साहित्य (Literature) का अविर्भाव समाज से ही होता है जिसे साहित्यकार अपने भाव के साथ मिलाकर उसे एक आकार देता है। यही रचना समाज के नवनिर्माण में पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभाने लगती है। साहित्यकार वह सशक्त माध्यम है जो समाज को व्यापक रूप से प्रभावित करता है। वह समाज में प्रबोधन की प्रक्रिया का सूत्रपात करता है, लोगों को प्रेरित करने का कार्य करता है तथा जहां एक ओर सत्य के सुखद परिणामों को रेखांकित करता है वही असत्य का दुखद अंत कर सीख व शिक्षा प्रदान करने का भी कार्य करता है। श्रेष्ठतम साहित्यकार व्यक्ति और उसके चरित्र निर्माण में भी सहायक होता है यही कारण है कि समाज के नवनिर्माण में साहित्यकार की भूमिका केंद्रीय रूप में होती है। साहित्यकार समाज को संस्कारित करने के साथ-साथ जीवन मूल्यों की शिक्षा देता है तथा कालखंड की विसंगतियों, विद्रूपताओं एवं विरोधाभासों को रेखांकित कर समाज को संदेश प्रेषित करता है जिससे समाज में सुधार आता है और सामाजिक विकास को गति मिलती है। साहित्यकार अतीत से प्रेरणा लेता है तथा वर्तमान को चित्रित करने का कार्य करता है एवं भविष्य का मार्गदर्शन करता है।
“हितेन सह इति सष्टि मूह तस्याभावः साहित्यम”। साहित्यकार (Writer) का मूल तत्व सबका हित साधन होता है एक साहित्यकार यही करता भी है। साहित्यकार मानवीय संवेदना के साथ गहराई के साथ सन्निविष्ट होता है तथा नैतिकता की असिधारा पर चलते हुए अपने धवल पक्ष का संवहन करता है।
हिंदी साहित्य की एक प्रोफेसर जो मात्र छात्रों को बेहतर तरीके से शिक्षित ही नहीं करती हैं वरन् उन्हें शोध (Research) कराते हुए समाज के शेष कोणों पर दृष्टि रखने हेतु जागरूक करती हैं। देश के साहित्यिक (Literature), सांस्कृतिक (Cultural), सामाजिक (Soical) एवं आध्यात्मिक (Spritual) परिवेश को आभायमान एवं सुवासित बनाए रखने में कृत संकल्पित हो नियत पथ पर सतत अग्रसर हैं। राजा मोहन गर्ल्स पोस्ट ग्रैजुएट कॉलेज अयोध्या (Raja Mohan Girls PG College, Ayodhya) में हिंदी साहित्य की प्रोफेसर डॉ सुधा राय जी (Prof. Dr. Sudha Ray) शिक्षा के पावन पेशे की गरिमा को बनाए रखते हुए मानवीयता के प्रबल पक्ष को भी पुख्ता आधार पर अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य करती हैं।
समाज के प्रत्येक पक्ष की तरह शिक्षा के क्षेत्र में भी विविध पक्षों में अवनयन दृष्टिगत होता है इसमें समाज के सर्वाधिक जिम्मेदार पक्ष के रूप में शिक्षक का उत्तरदायित्व से विरत होना सुसंगत नहीं है परंतु आदरणीया डॉ सुधा राय जी शिक्षक के रूप में कल-कल करती चिपथगा की तरह बहते हुए अपनी निर्मलता से अपने आँचल की छाया से आच्छादित करते हुए पर पीड़ा को तो हर ही रही हैं साथ ही मानवता की घाटी में तेजी के साथ फिसल रही अनैतिकता को अपने बलिष्ठ हाथों के स्नेहिल सम्बल से थामने का भी कार्य भी कर रही हैं।
प्रसिद्ध संत परम पूज्य बाबा गोरखनाथ जी (Baba Gorakhnath) की धरती के निवासी शासकीय सेवा में रत श्री नारायण राय जी एवं जीवन संगिनी स्वर्गीय परमा देवी जी की गोद में 22 जुलाई 1965 को जन्मी प्रोफ़ेसर सुधा राय जी जब प्राथमिक कक्षा में अध्यनरत थी तभी माँ ने पशुता से बैर तथा पशुओं तक से प्रेम का पाठ दूध की घूंटों के साथ पिला दिया था। वर्ष 1981 में आप 11वीं की छात्रा ही थी कि तीन भाइयों और दो बहनों के बीच रहने वाली सुधा राय जी के माता-पिता ने एक नेक दिल इंसान एवं पेशे से अधिवक्ता श्री अशोक कुमार राय जी संग विवाह कर दिया। विवाह उपरांत आपने अपनी शिक्षा जारी रखते हुए उच्च शिक्षा की एक-एक सीढ़ी चढ़ती गईं तथा साहित्य जगत के मूर्धन्य मनीषी डॉ कमलाकर पांडे जी के श्रेष्ठतम सानिध्य में डॉक्टरेट की उपाधि लेने के उपरांत आप 1990 में महाविद्यालय में प्रोफेसर (Professor) के रूप में नियुक्त हो गईं।
जीवन की रेल चलने लगी लेकिन आपको मात्र इतने से ही संतुष्टि नहीं मिल रही थी। समाज की विषमताओं को देख आपका हृदय क्रंदन कर उठता फलतः आपने समाज के लिए शिक्षा से इतर कार्य करना प्रारंभ कर दिया। आप सामाजिक कार्यों के साथ-साथ पर्यावरण (Environment) के संकट से चिंतित रहती हैं। पॉलीथीन (Polythene) जैसे घातक अवयव से होने वाले दुष्प्रभाव के चलते अपने स्तर से आपने निःशुल्क कपडे के बैग वितरित करते हुए लोगों से पॉलिथीन के बजाय इनके प्रयोग हेतु अनुरोध करना शुरू किया तथा इस दिशा में आप लोगों को जागरूक करती रहतीं हैं। महिला सशक्तिकरण (Women empowerment) की दिशा में आप स्कूलों-कालेजों में जाकर तथा दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के माध्यम से अनवरत प्रयास करती रहती हैं। आपके प्रयासों का पुख्ता प्रभाव भी दिखता है। आपके बेहतरीन मार्ग-निर्देशन में शोध कर चुके दर्जनों छात्र आपके गुणों की खुशबू को प्रसारित कर रहे हैं। योग्य माता-पिता की योग्य संतानों का मिलना देव कृपा होती है। ईश्वर की अनुकंपा के चलते हैं आपके आंगन में रत्न की परिभाषा को सौ प्रतिशत सच साबित करते हुए तीन सुकान्याएं एवं सुपुत्र संस्कार एवं संस्कृत के समस्त अवयवों को समेटे हुए इंसानियत को अवलंब देने का कार्य कर रहे हैं। समाज, संस्कृत, भाषा, साहित्य एवं पर्यावरण के क्षेत्र में पूर्ण समर्पण भाव से जुटी हुई प्रोफ़ेसर सुधा राय जी को अनेक सम्मानों से प्रायः नवाजा जाता रहता है। आज आपकी गणना अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्तित्व के रूप में की जाती है।