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विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है। दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए अन्न के कण को "और" आनंद के क्षण को।
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आप अकेले बोल तो सकते है परन्तु बातचीत नहीं कर सकते। आप अकेले आनन्दित हो सकते है परन्तु उत्सव नहीं मना सकते। अकेले आप मुस्करा तो सकते है परन्तु हर्षोल्लास नहीं मना सकते हम सब एक दूसरे के बिना कुछ नहीं हैं यही रिश्तों की खूबसूरती है।
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"वाणी" और "पानी" दोनों में ही "छवि" नज़र आती है "पानी" स्वच्छ हो तो "चित्र" नज़र आता है "वाणी" मधुर हो तो "चरित्र" नज़र आता है।
विश्वास तो दर्पण है- तोडो तो पहले जैसा रूप नहीं, जोड़ो तो पहले जैसा अक्स नहीं।