कभी-कभी भगवान को भक्तों से काम पड़े ।हैदराबाद में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम के दौरान जैसे ही है यह भजन समाप्त होता है कि श्रोता दीर्घा में बैठे शास्त्रीय संगीत के पितामह श्रीयुत पंडित जसराज जी उठते हैं और गाने वाले के गले में अपना मोतियों से जड़ित अत्यंत प्रिय हार निकाल कर डाल देते हैं तथा भाव विह्वल हो अश्रु बहाते हुए लिपटा लेते हैं। यह गायक कोई और नहीं थे अपित हिंदुस्तान की धरती से निकलकर जिनके गुणों की खुशबू संपूर्ण विश्व में फैली हुई है, जिनके भजनों को सुन कर लोग सुध बुध खो देते हैं, दीवाने हो झूमने लगते हैं तथा जिन्हें भारतीय संगीत में भजन सम्राट के नाम से विभूषित किया गया है यह वही शख्सियत थी, जिन्हें बड़े आदर और सम्मान से हम अनूप जलोटा के नाम से जानते हैं। कहते हैं कि योग्य पिता के योग्य पुत्र विरले ही होते हैं लेकिन श्री अनूप जलोटा जी के साथ यह मिथक टूट जाता है। पंजाब प्रांत में जन्मे तथा आगे चलकर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आकर बसे आपके पिता श्री पुरुषोत्तम दास जलोटा जी शास्त्रीय संगीत के उत्कृष्ट गायक थे। उन्होंने संगीत साधना के दम पर अपनी तो विशिष्ट पहचान बनाई है साथ ही इसे प्रभु के चरण वंदन से जोड़ने का अद्भुत कार्य किया था। आपके आंगन में दूसरे पुत्र के रूप में वर्ष 1953 में जन्मे श्री अनूप जलोटाजी (Anup Jalota) ने मात्र 5 वर्ष की उम्र में ही गाना प्रारंभ कर दिया और 7 वर्ष की आयु में मंच पर बेहतरीन गायक के रूप में गाने लगे। वैसे श्री अनूप जलोटा ने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक तथा भातखंडे से संगीत की शिक्षा प्राप्त की लेकिन पिताजी के जीवन दर्शन से प्रभावित हो आप उन्हीं को अपना गुरु माना तथा गायन की अपनी गाड़ी को चलाना शुरु कर दिया। शुरुआती दिनों में आप ऑल इंडिया रेडियो में कोरस के रूप में गाते थे। इस तरह आपका गायकी का सफर चल पड़ा।
वैसे तो आपने एक एक करके अनेक गीतों को गाया लेकिन आपके जीवन में क्रांतिकारी बदलाव जिस भजन से आया वह था,ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन। इस भजन ने लोगों को पागल कर दिया, आम आदमी इसे सुनकर इसी में डूब सा गया। इसके बाद आपने एक से बढ़कर एक भजनों से हिंदुस्तानी रूहानी खजाने को हरा जिसकी खुशबू जिसकी आभा हर वर्ग, प्रत्येक आयु के व्यक्ति को मदहोश कर देती। देश का कोई कोना नहीं जहां आप के भजनों की स्वर लहरी सुनते लोग ना मिल जाए, दुनिया की कोई जगह नहीं है जहां अनूप जलोटा के भजन के दीवाने न हो। संपूर्ण विश्व में आपको सुनने वालों की विशालकाय आबादी है ।आपको सुनकर लोग अपने दुख दर्द को और यहां तक कि अपने तक को भूल जाते हैं ।आपके स्वर समंदर से ऐसे ऐसे भजन निकले हैं जो सर्व कालीन अपनी महत्ता बरकरार रखेंगे। ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन के अलावा मैं नहीं माखन खायो, रंग दे चुनरिया, जग में सुंदर हैं दो नाम, चदरिया झीनी रे झीनी जैसे भजन आप द्वारा गाए मात्र शब्द भर नहीं हैं अपितु भारतीय जनमानस के लिए एक अवलंब हैं, प्रभु की आराधना के लिए एक सहारा है ,एक पतवार है, किश्ती हैं। संकट मोचन नाम तिहारो, सिंदूर लाल चढ़ायो, सूरज की गर्मी से, मुकुंद माधव गोविंद बोल, माता की आरती, तरसे नैना बरसे नैना ,रात जगराते की है, गोविंद बोलो हरि गोपाल जैसे एल्बम आप के खजाने के नायाब रत्न हैं।भजन, संसार को अपने अनमोल से कोष नवाजने वाला यह यह नायाब शख्स उर्दू की गजल और कविताओं से भी लोगों को खूब जोड़ने का कार्य किया है ।आज श्री अनूप जलोटा नाम, एक नाम भर नहीं रह गया है अपितु भारत की पहचान, देश की सांस्कृतिक खुशबू की महक, हिंदुस्तान के गौरव की शान हो चुका है। लगभग 8 भाषाओं में गाने का अद्भुत हुनर रखने वाले श्री अनूप जलोटा जी के लगभग 15 से भी अधिक अधिक भजन एवं गजल रिकॉर्ड किए जा चुके हैं ।विभिन्न देशों के 400 शहरों में तकरीबन 5000 से भी अधिक आपके लाइव कंसर्ट हो चुके हैं ।आपको प्रायः विविध प्रकार के सम्मान से विभूषित किया जाता रहता है ।भारत सरकार ने आपको अति प्रतिष्ठित सम्मान पद्मश्री से वर्ष 2012 में सम्मानित किया है।