Related Posts
-
"अच्छाई-बुराई" "इंसान" के "कर्मो" में होती है। कोई "बांस" का "तीर" बनाकर किसी को "घायल" करता है, तो कोई "बांसुरी" बनाकर बांस में "सुर" को भरता है।
-
जैसे जैसे आपका नाम ऊंचा होता है, वैसे वैसे शांत रहना सीखिए क्योंकि। आवाज हमेशा सिक्के ही करते है, नोटों को कभी बजते नहीं देखा।
-
दुनिया में दान जैसी कोई सम्पत्ति नहीं, लालच जैसा कोई और रोग नहीं, अच्छे स्वभाव जैसा कोई आभूषण नही, और संतोष जैसा और कोई सुख नहीं।
बात इतनी मीठी रखो की कभी वापिस लेनी पड़ जाए तो ख़ुद को कड़वी ना लगे।