बल और शक्ति की आज्ञा टालना आसान है मगर प्यार की आज्ञा टालना आसान नहीं हैं। लक्ष्य अगर सर्वोपरि है तो फिर आलोचना तारीफ विवेचना कुछ मायने नहीं रखती है l