चाह कर भी अपने प्रति लोगो की धारणा नहीं बदल सकते। इसलिए शांति से अपना जीवन जिये औऱ मस्त रहे प्रसन्न रहे।
चाह कर भी अपने प्रति लोगो की धारणा नहीं बदल सकते। इसलिए शांति से अपना जीवन जिये औऱ मस्त रहे प्रसन्न रहे।
चाह कर भी अपने प्रति लोगो की धारणा नहीं बदल सकते। इसलिए शांति से अपना जीवन जिये औऱ मस्त रहे प्रसन्न रहे।
“बहस” और “बातचीत” में एक बड़ा फर्क है “बहस” सिर्फ़ यह सिद्ध करती है, *कि “कौन सही है” । जबकि “बातचीत” यह तय करती है,कि “क्या सही है”।
दुख: ही इंसान का सबसे सच्चा मित्र है जब तक साथ रहता है,तो बहुत सबक सिखाता है और जब छोड़कर जाता है तो सुख देकर जाता है.!!
प्रकृति ने सिर्फ दो ही रास्ते दिए हैं! “या तो देकर जाएं या, फिर.. छोड़कर जाएं”! साथ ले जाने की कोई व्यवस्था नहीं है! अतःकुछ ऐसा छोड़कर जाए कि हमेशा लोगो कि यादो में बने रहे।
ख़ामोशी की तह में छुपा लो सारी उलझनो को, शोर कभी मुश्किलों को आसान नहीं करता। जो सुख में साथ दे, वे “रिश्ते” होते हैं ! जो दुख में साथ दे, वे “फरिश्ते” होते हैं !