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- जब तक आप सामने वाले के मन की करते है, तो अच्छे है। अगर, एक बार अपने मन की कर ली तो, सभी अच्छाइयां बुराई में तब्दील हो जाती है।
- यदि आप में दूसरों के लिए "प्रार्थना" और "सेवा" करने की आदत है। तो आपको स्वयं के लिए "प्रार्थना" करने की आवश्यकता नहीं होगी।
- स्वभाव सूर्य जैसा होना चाहिए, न उगने का अभिमान और न डूबने का गम जीने का यही अंदाज रखो । जो तुम्हे ना समझे, उसे नजरअंदाज रखो। देने के लिए कुछ न होतो सामने वाले को सम्मान दे, यह भी बड़ा दान होगा।
अपनी ऊर्जा को चिंता करने मे खत्म करने से बेहतर है इसका उपयोग समाधान ढूंढने मे किया जाए !!