हम न नास्तिक है न आस्तिक, हम तो केवल वास्तविक है। जो अच्छा लगे उसको ग्रहण करो, जो बुरा लगे उसका त्याग करो फिर चाहे वो विचार हो, कर्म हो, या धर्म हो।
by Newspositive
Related Posts
-
दुनिया में दान जैसी कोई सम्पत्ति नहीं, लालच जैसा कोई और रोग नहीं, अच्छे स्वभाव जैसा कोई आभूषण नही, और संतोष जैसा और कोई सुख नहीं।
-
रिश्ते, दोस्ती और स्नेह हर एक के मुक़द्दर में होते हैं, पर यह रुकते उन्हीं के पास हैं, जहाँ इनकी कदर होती है।
-
एक व्यक्ति ने भगवान से पूछा, तुझे कैसे रिझाऊं मैं। कोई वस्तु नहीं ऐसी जिसे तुझ पर चढाऊं मैं, "भगवान ने उत्तर दिया" संसार की हर वस्तु तुझे मैनें ही दी है। तेरे पास अपना सिर्फ तेरा "अहंकार" है,जो मैनें नहीं दिया। उसी को तु मुझे "अर्पण" कर दे,"तेरा जीवन सफल हो जाएगा"
हम न नास्तिक है न आस्तिक, हम तो केवल वास्तविक है। जो अच्छा लगे उसको ग्रहण करो, जो बुरा लगे उसका त्याग करो फिर चाहे वो विचार हो, कर्म हो, या धर्म हो।