हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों का विधान है। उनमें एक उपनयन संस्कार है। इस संस्कार से बालक के मन में अध्यात्म चेतना जागृत होती है। ऐसा कहा जाता है कि जब बालक ज्ञान अर्जन योग्य हो जाता है, तब उपनयन संस्कार किया जाता है।
कालांतर से इस संस्कार का विशेष महत्व है। हालांकि, तत्कालीन समय में वर्ण व्यवस्था उपनयन संस्कार से निर्धारित किया जाता था। ऐसा कहा जाता है कि जब बालक ज्ञान हासिल करने योग्य हो जाए तो उसका सर्वप्रथम उपनयन संस्कार कराना चाहिए इसके बाद उसे ज्ञान हासिल करने हेतु पाठशाला भेजना चाहिए। 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है उपनयन संस्कार, इसे यज्ञोपवित या जनेऊ संस्कार भी कहा जाता है। उप यानी पानस और नयन यानी ले जाना अर्थात् गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार। प्राचीन काल में इसकी बहुत ज्यादा मान्यता थी। वर्तमान की बात करें तो आज भी यह परंपरा कायम है। लोग आज भी जनेऊ संस्कार करते हैं। जनेऊ में तीन सूत्र होते हैं। ये तीन सूत्र तीन देवता के प्रतीक हैं यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश। यह संस्कार करने से शिशु को बल, ऊर्जा और तेज की प्राप्ति होती है। यही नहीं, शिशु में आध्यात्मिक भाव जागृत होता है।
भारत के छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर के सदानी दरबार में प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में उपनयन संस्कार का आयोजन किया जाता हैं जिसमे श्रद्धालू अपने बच्चों का उपनयन संस्कार करवाते है, यह आयोजन पूर्णतः रूप से निःशुल्क होता हैं।
सदानी दरबार में अभी तक सबसे ज्यादा निःशुल्क उपनयन संस्कार संपन्न कराने पर गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स (Golden Book of World Records) में “Most Janeu Rituals Performed in Annual Mass Ceremony” शीर्षक के साथ वर्ल्ड रिकॉर्ड के रूप में दर्ज किया गया जिसका सर्टिफिकेट गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड की प्रतिनिधि श्रीमति सोनल राजेश शर्मा जी ने संत श्री डॉ युधिष्ठिर लाल जी (Sant Shri Yudhishthir lal ji) को प्रदान किया।
कार्यक्रम के विशेष अवसर पर विशेष अतिथि के रूप में छत्तीसगढ़ माननीय मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी मौजूद रहे। साथ ही दूधाधारी मठ के महंत आदरणीय श्याम सुंदर दास जी, विधायक श्री कुलदीप जुनेजा जी, श्री पंकज शर्मा जी, राधा राजपाल जी और और पकिस्तान से भी कई श्रद्धालू कार्यक्रम में मौजूद हुए।