यदि आज की पीढ़ी से प्रश्न पूछा जाए कि किसी क्रांतिकारी शहीद का नाम बताओ, तो वे पहला जवाब सरदार भगतसिंह कहेंगे क्योंकि वो और किसी का नाम नही जानते। अंग्रेजों का भारतीयों पर भयानक अत्याचार वे न तो जानेगे न ही समझ सकते है। 600-700 वर्षो का भयानक काल पहले मुसलमानों द्वारा हज़ारों हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया व हज़ारों हिन्दू लड़कियों को जबरन मुसलमान बनाया फिर जमाना आया अंग्रेजो का। उन्होंने हज़ारों आदिवासियों को ईसाई बनाया एवं सीधा-सीधा हिन्दू लड़कियों से शादी कर एक जाति बनाई ,”ऐंग्लो इंडियन”। सारे भारत से सोना, चांदी, हीरे, मोती जबरजस्ती लूट लिए। जरा-जरा सी बात पर लाठी चार्ज व जेल में डालना आम हो गया था। अब तो लड़के अंग्रेजो का ड्रेस पहनते है। हिंदी शब्दो के अर्थ नहीं मालूम और लड़कियां फ्रॉक पहनती है। इतिहास कौन सा पढती है ,जो अंग्रेजो ने लिखा है।

पंजाब (Punjab) के जिला लायलपुर के बंगा (Banga) ग्राम में 28 सितंबर 1907 में ऐसे पंजाबी परिवार ने भगत सिंह का जन्म हुआ, जो पूरा परिवार अंग्रेजो का विरोधी था। पिता सरदार किशन सिंह संधू जी (Sardar Kisan Singh Sandhu) का जीवन जेल में ही गया, जो करना अंग्रेजो से भारत माता को आज़ाद करना, यही विचार था बड़े चाचा अजीत सिंह का जो पंजाब से निर्वासित कर दिए गए थे। छोटे चाचा खडग सिंह को जेल में इतनी यातनाए दी गई कि उनका निधन हो गया। भगत सिंह को 3 वर्ष की उम्र में ही गायत्री मन्त्र कंठस्थ था। प्राइमरी परीक्षा के बाद लाहौर से स्वतंत्र विचार वाली स्कूल में भर्ती किया फिर परमानंद कॉलेज में भर्ती किया गया। भगत सिंह को साहित्य, इतिहास व राजनीति पसंद थी सो वे जोरदार भाषण देते थे। घर के लोग शादी कराना चाहते थे, तो भाग कर दिल्ली गए व अर्जुन समाचार पत्र में लग गए। 1924 में गणेश शंकर विद्यार्थी जी से मिलने के बाद उनके साथ काम करने लगे। राष्ट्रीय विद्यालय बना तो उन्हें प्रिंसिपल बनाया तब वे मात्र 18 वर्ष के थे। इन्होंने ‘नौजवान भारत सेना’ बनाई जिसमे अंग्रेजो से लड़ने के लिए नौजवानों को लिया गया। उंगली चीर कर अपने रक्त से लिख कर मेंबर बनाये, लड़के अब अमृतसर जाकर अकाल पत्र के संपादक बने। 1926 में एक सभा में गए थे किसी ने बम फेंका पर पुलिस ने भगत सिंह को जेल में डाल दिया। काकोरी काण्ड के लिए रामप्रसाद विस्मिल को फांसी दे दी गई ।1928 में सब जग घूम कर सबको जाग्रत करते रहे। सायमन कमिशन आया तो विरोध करते लाजपत राय जी को पुलिस ने इतना मारा कि वे मर गए, तो भगत सिंह एवं आज़ाद आदि गए व सेंडर्स की हत्या कर दी व भाग कर कोलकत्ता गए व बम बनाने वालों को सिखाते रहे। केंद्रीय असेंबली को सच बताने यहाँ वहाँ भगत सिंह व साथियो ने पेपर फेंके और दूर-दूर गोलिया चलाई क्योंकि उनका उद्देश्य किसी को मारना नही था। नारा दिया “इंक़लाब ज़िंदाबाद”, भारत माता की जय की आवाज़ बुलंद की। अंग्रेजों ने पुरानी बातें निकाल कर सरकारी पैसे चुराना, सैंडर्स हत्या आदि बातें जोड़कर भगत सिंह, सुखदेव सिंह व राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई। 24 मार्च 1931 को सुबह फांसी देनी थी पर सैकड़ो बचाने आएंगे जानकर अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 की शाम को ही फांसी के फंदे पर लटका दिया और रात को ही जला दिया। एक अच्छे देशभक्त को गलत आरोप लगाकर अंग्रेजो ने फांसी दी।