हाथ ही शरीर का ऐसा अंग है जो हर काम को करने में साथ देता है तथा कठिन से कठिन कार्य को भी सरल बना देता है। लेकिन अचानक यदि हाथ ही न रहें तो जीवन कितना कठिन हो जाता है, इसकी कल्पना की जा सकती है। परंतु ऐसे भी व्यक्तित्व हैं जो किसी कमी से हार नहीं मानते तथा हौसलों के द्वारा बड़ी से बड़ी उड़ान कर लेते हैं और एक आदर्श बन जाते हैं।

जब ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए ऐसा व्यक्ति संबंधित कार्यालय में संपर्क करता है, जिनके दोनों हाथ कटे हों तो सभी का यह देख कर नाराज होना, खिल्ली उड़ाना स्वाभाविक ही था। लेकिन जब उस व्यक्ति को गाड़ी चलाने हेतु परीक्षण दिए जाने के लिए लखनऊ के तंग एवं भीड़-भाड़ इलाकों में कहा जाता है तो उस समय उपस्थित सभी अधिकारीगण उन व्यक्ति को फर्राटे के साथ गाड़ी चलाते देख दंग रह जाते हैं। अयोध्या, उत्तर प्रदेश निवासी, अपने अदम्य साहस से स्वयं को निर्मित करने वाले, लोगों के लिए प्रेरणा पुंज बन चुके, उस व्यक्ति का नाम है श्री अशोक कुमार द्विवेदी (Mr. Ashok Kumar Diwedi)।

वर्ष 1967 की जुलाई महीने की 22 तारीख को श्री दुर्गा प्रसाद द्विवेदी जी एवं श्रीमती फूलकली देवी जी की गोद में जन्मे श्री अशोक द्विवेदी जी की उम्र 12 वर्ष ही रही होगी जब वह कक्षा 8 के छात्र थे तब विद्युत चालित मशीन में परिवार के एक मंदबुद्धि व्यक्ति द्वारा चारा काटते समय दुर्घटना का शिकार हो रहे उस सेवक को बचाने के चक्कर में स्वयं शिकार हो गए और दोनों हाथ गवा बैठे। काफी समय बाद स्वस्थ होने के उपरांत फिर से नए हौसले से आपने जीवन के मानकों को बनाना शुरू किया और सर्वप्रथम पढ़ाई करने लगे। विभिन्न प्रकार के झंझावातों को झेलते हुए आपने पढ़ाई पूरी की तत्पश्चात वकालत करना शुरू कर दिए।

धीरे-धीरे आपकी गिनती अच्छे वकीलों में की जाने लगी। गरीबों, महिलाओं एवं दिव्यांग जनों की आप खूब मदद करने लगे तथा भारत सरकार द्वारा साल 2005 में जन सूचना अधिकार अधिनियम बनाए जाने के उपरांत इस दिशा में भी आपने लोगों की खूब मदद करना शुरू किया और न्याय दिलाने लगे। बेहतरीन कार चलाने के साथ-साथ आप हारमोनियम जैसे अनेक वाद्य यंत्रों को बेहतरीन तरीके से बजाने में भी माहिर हैं। आज जिले में एक प्रतिष्ठित वकील के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता, गरीबों की मदद करने वाले, उन्हें न्याय दिलाने वाले एक बेहतरीन इंसान के रूप में भी आपको जाना और माना जाता है। श्री अशोक कुमार द्विवेदी जी “इसके तो हाथ नहीं हैं” लोगों के यह ताने सुनते-सुनते ही बड़े हुए मगर वही लोग आज आपकी तारीफ करते नहीं थकते। आज आपको अक्सर प्रतिष्ठित मंचों पर अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है तथा अपनी शारीरिक दुर्बलता को बाधक न मानकर अपने जज्बे के सहारे एक कर्मवीर बन लोगों को लिए प्रेरणा पुंज बन गए हैं।