कमर से नीचे का पूरा हिस्सा दिव्यांग हो जाने के कारण जब स्वयं की रोजमर्रा की सामान्य जिंदगी जीना ही कठिन हो जाए तो ऐसी हालत में पढ़ना लिखना ,वह भी असाधारण रूप में ,इतना ही नहीं अन्य के जीवन को भी पढ़ा लिखा कर संवारने का हुनर और जज्बा हर किसी के बूते में नहीं होता है। डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह (Dr. Yogendra Pratap Singh) नाम का एक ऐसा ही युवा लखनऊ में एक ऐसा संस्थान ,सेंटर फॉर स्किल डेवलपमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप तथा विनय योग ट्रस्ट स्थापित किया है ,जहां आप छात्रों को जोड़कर, कुछ खास बनने के लिए, लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तैयार करते हैं। पूरब के ऑक्सफोर्ड के नाम से विख्यात इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने के समय ही हर छात्र के मन में बेहतरीन सेवा में जाने का सपना होता है। इसी जोशो खरोश के साथ पड़ोसी जनपद प्रतापगढ़ के योगेंद्र जी ने भी गणित विषय से स्नातकोत्तर में पढ़ाई के लिए प्रवेश लेने के साथ अपने ख्वाब गुना था। प्रखर दिमाग़ तो था ही साथ ही वरिष्ठ छात्रों का लगातार आईएएस में चयन होते देख उनमें भी आईएस बनने का जबरदस्त जज्बा पैदा हुआ था । इसके लिए बेहतरीन पढ़ाई भी करते थे ,यह वह दौर था जब मनोरंजन करने हेतु या दिमाग को तरोताजा करने हेतु मोबाइल, कंप्यूटर आज की तरह नहीं हुआ करते थे छात्रों के पास । योगेंद्र जी भी पढ़ाई लिखाई के बोझ को कम करने के लिए शाम को यूनिवर्सिटी के मैदान में थोड़ा बहुत खेल लिया करते थे ।आपकी यही सामान्य दिनचर्या थी लेकिन कहां किसी को पता होता है कि विधना ने किसी के भाग्य में क्या लिखा है ।रोज की तरह एक दिन आप खेल रहे थे कि अचानक खेल में ही चोट लग जाती है और आप गिर पड़ते हैं। जब आपकी आंख खुलती है तो अपने को एक अस्पताल में पाते हैं।बात यहीं तक होती तो कोई बात नहीं ,जब आप अपना पैर उठाते हैं तो हिल नहीं रहा है, न कमर हिल रही है ,कमर के नीचे का हिस्सा सुन्न। आपके कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या माजरा है। आखिरकार डॉक्टरों ने बताया कि उनके रीढ़ में गहरी चोट लगने से उसका ऑपरेशन करना पड़ेगा ,लेकिन इससे वह आजीवन खड़ा नहीं हो पाएंगे और व्हील चेयर पर ही रहना होगा ।हुआ भी वही ऑपरेशन के उपरांत आईएएस बनने का ख्वाब देखने वाला वह नौजवान होनहार छात्र अपने जीवन में अंधेरा देख रहा था। कैरियर के बारे में तो कुछ सोचना ही नहीं था ।मां-बाप की आर्थिक हैसियत भी अच्छी नहीं थी ।सब बेबस और लाचार थे ,ईश्वर ने होनहार योगेंद्र जी के जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा भले छीन चुके थे लेकिन उनका जज्बा नहीं मिटा सके ।गजब की मिट्टी के बने थे आप कुछ समय बीतने के बाद आपके मन में पुनः पढ़ाई करने का विचार आया ।कॉमर्स विषय से पोस्ट ग्रेजुएट के लिए आपने प्रवेश लिया और अच्छे अंकों के साथ डिग्री प्राप्त कर आगे चलकर लखनऊ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट किया। कंप्यूटर से भी आपने डिग्री प्राप्त की, विषय पर असाधारण पकड़ और अपने ज्ञान से अन्य को लाभ पहुंचाने के गुण आपके अंदर कूट-कूट कर भरे थे ,इसी के चलते धीरे-धीरे आपको छोटे-मोटे शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया जाने लगा। आगे चलकर आपको प्रतिष्ठित संस्थाओं में भी आमंत्रण आने लगे।रुड़की जैसे अत्यंत प्रतिष्ठित संस्थान में भी आप को पढ़ाने के लिए आमंत्रण आया अब आपकी ख्यात में अत्यधिक इजाफा हो गया और विभिन्न यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने वाले छात्र भी आपका मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए आने लगे।शिक्षा जगत की शान प्रतिष्ठित आईआईटी के छात्र भी आपके पास पढ़ने के लिए आने लगे। शैक्षणिक संस्था अथवा विभिन्न प्रकार की अकादमियां आज डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह को मेहमान के रूप में आमंत्रित करती हैं, सम्मानित करती हैं और गर्व से बताती हैं कि आज हमारे संस्थान के मुख्य अतिथि के रूप में डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह का आगमन हो रहा है।
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