साहित्य एवम् संगीत (litrature & music) दोनों ही लोगों के दिलों को छूने में कारगर होती है। आमजन की पीड़ा को अपनी लेखनी के माध्यम से उतारकर काव्य के रूप में सुनाना हो या प्रकृति के विविध स्वरूपों का वर्णन। लेखन की जादूगरनी की तरह लोगों के दिलों को छू कर श्रोताओं के मन के तारों को झंकृत करने की ताकत होना सरल नहीं होता, लेकिन श्रीमती मालविका हरिओम जी (Mrs. Malvika Hariom) एक ऐसा नाम हो गया है जिन्हें सुनने के लिए साहित्य के सच्चे उपासक इंतजार करते रहते हैं। मालविका हरिओम जी के गुणों की सीमा इतनी भर ही नहीं है, संगीत में विश्वविख्यात हस्ताक्षर श्री गुलाम अली जी हों अथवा आज के अनेक नामचीन गायक, आदरणीया मालविका जी मंच पर जब गायन प्रस्तुत करती हैं तो बरबस ही सभी ताली बजाते हुए, मंत्रमुग्ध हो झूमने लगते हैं।

किशोर काल से ही कवि सम्मेलनों में प्रतिभाग करने तथा मंचों पर जाने वाली मालविका हरिओम जी ने काव्य का ककहरा अपने समय के काव्य जगत के लब्ध प्रतिष्ठित हस्ताक्षर पिता जी श्री सत्यपाल नागिया जी (Mr. Satyapal Nagia) से सीखा। श्रद्धेय सत्यपाल नागिया जी वही हैं, जिन्होंने मंचों पर कविता की आड़ में चुटकुले बाजी के प्रवेश को बुरा मानते हुए अत्यंत ही गंभीरता से लिया, साथ ही इसका पूरी शिद्दत से विरोध भी अपनी रचनाओं के द्वारा किया। मालविका जी बचपन से न केवल रचनाएं करती हैं, वरन अपनी शैली में गायन भी करती हैं। इस दिशा में भी आपने साधना जारी रखी, अलबत्ता काव्य पाठ पर अधिक ध्यान रहा। वैसे तो स्त्री विमर्श पर आपकी लेखनी खूब चलती है लेकिन आम जनमानस के निकट आप अपने को अधिक पाती हैं, इसीलिए आपके लेखन में भी यह असर स्पष्ट तौर पर दिखाई देता है। वैसे पूर्व में आप काव्यपाठ को ही वरीयता देती रही हैं, लेकिन विवाहोपरांत पतिदेव डॉ हरिओम जी जो भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं का गायन के प्रति अद्भुत लगाव होने के चलते आप भी इस दिशा में गहराई से सन्नध हुई। पतिदेव के सहयोग और कठिन साधना के चलते धीरे-धीरे गायन में आपने अलग दिशा का निर्माण किया और देखते-देखते श्रेष्ठतम गायकों में आपकी गणना की जाने लगी।

मालविका जी कहती हैं, ”सुर भगवन की देन हो सकती है, लेकिन साधना आपको खुद ही करनी पड़ती है”। कला कोई भी हो वह ईश्वर की साधना होती है। संगीत एक तरह की इबादत है, व्यायाम है। आदरणीया मालविका हरिओम जी स्वयं श्रेष्ठतम गायिका और कवयित्री तो हैं ही साथ ही साहित्यकारों और कलाकारों की मदद भी करती रहती है। साहित्य, कला एवं संगीत के संरक्षण की दिशा में भी आप सतत प्रयत्नशील रहती हैं। आप लोकायतन (Lokaytan) नामक संस्था की स्थापना कर इस कार्य को और भी अच्छे तरीके से अंजाम दे रही हैं।