बेहद गरीबी से बीत रहे बचपन में अंधेरे ने तब और अपना साम्राज्य स्थापित करने की पुरजोर कोशिश की जब किशोरावस्था में ही पिता श्री ब्रह्मदत्त प्रजापति जी का अकस्मात देहावसान हो गया तब बेटे जयपाल की ज़िम्मेदारी माँ संतोषी देवी जी के अकेले जिम्मे आ गई। घर की आर्थिक स्थिति डगमगाने के कारण मुसीबतें पग-पग पर डिगाने का पूरा प्रयास करने लगीं परंतु जयपाल जी ने हिम्मत नहीं हारी। शायद परमपिता परमेश्वर ने होनहार जयपाल प्रजापति (Jaipal Prajapati) जी को अलग ही सांचे में बनाया था एवं ईश्वर इन्हें कोई बड़े कार्य की ज़िम्मेदारी सौंपने वाले थे।
स्कूली दिनों से ही पढ़ाई के साथ-साथ किताबों में योगाभ्यास के बारे में पढ़कर अनेक प्रकार के योग करने की ललक उत्पन्नं हुई जिसके चलते जयपाल जी पड़ोसी के घर जाकर टीवी देखने लगे, किन्तु ये ज्यादा दिन तक न चल सका। एक दिन पड़ोसी ने अपने यहाँ आकर टीवी देखने से साफ मना कर दिया जो आपके लिए वज्रपात समान था क्योंकि टीवी पर ही स्वामी रामदेव जी को देखकर आप योग सीखा करते थे। इसके पश्चात आप कुछ दिनों तक सड़क पर खड़े होकर पड़ोसी की टीवी में योग देखने लगे, यह कठिन तपस्या तबतक चली जबतक आप योग के विषय मे काफी कुछ सीख नहीं गए। अब जयपाल जी लोगों के सामने छोटे-मोटे कार्यक्रमों में योग का प्रदर्शन करने लगे जिससे लोगों का आपके प्रति रुझान बढ़ने लगा। जब पूरे देश मे पहली बार योग महोत्सव मनाने की शुरुआत हुई तब तक आपकी ख्याति जिले में हो चुकी थी जिसके चलते उस कार्यक्रम में आपको बतौर ज़िला प्रभारी शिरकत करने तथा कठिनतम योगाभ्यास प्रदर्शित करने का अवसर प्राप्त हुआ। इसे देख एक महोदय ने आपको पतंजलि योग पीठ चलने का सुझाव दिया और बताया कि गुरुदेव उन्हें देखकर प्रसन्न होंगे, इस पर आपने किराया न होने की बात उन महोदय को बताई तो कुछ दिन पश्चात वे महोदय अपने पैसे से जयपाल जी को पतंजलि योग पीठ ले गए। स्वामी रामदेव जी ने जयपाल (Jaypal) जी से मिलकर योग के प्रति उनकी असाधारण ललक एवं साधना देखने के बाद अपने ही पास रख कर योग में पारंगत कर देने की इच्छा व्यक्त जी जो जयपाल जी ने तुरंत ही स्वीकार कर ली, क्योंकि यह उनके लिए सपने के साकार होने जैसी बात थी। जिन स्वामी रामदेव जी को वह टीवी में देखकर एकलव्य की तरह योग सीखने का प्रयास कर रहे थे वहीं स्वामी रामदेव जी स्वयं उनको योग में पारंगत बनाने के लिए अपने पास रखने के लिए सहर्ष तैयार थे। धीरे-धीरे अपनी साधना के बल पर आप गुरूदेव के स्नेह के पात्र बनते गए तथा अनेक बड़े कार्यक्रमों में जयपाल जी को महती ज़िम्मेदारी मिलने लगी। उसी दौरान पूज्य स्वामी रामदेवजी द्वारा योग के एक बड़े कार्यक्रम में विश्व रिकॉर्ड बनाने का एक विशाल कार्यक्रम रखा गया जिसमें गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (Golden Book of World Records) के हेड डॉ मनीष विश्नोई जी एवं श्री आलोक कुमार जी GBWR की टीम के साथ निरीक्षण हेतु उपस्थित थे। जयपाल जी ने भी इस कार्यक्रम में दो घंटे से अधिक शीर्षासन करके विश्व रिकॉर्ड बनाया।
इसके बाद आपका जीवन ही बदल गया एवं आप एक योग साधक के रूप में स्थापित हो गए। इसी बीच जयपाल जी को पता चला कि उनके द्वारा स्थापित सर्वाधिक समय तक शीर्षासन करने का विश्व रिकॉर्ड्स ब्रेक हो गया है तो उन्होंने अपनी साधना और कड़ी करते हुए इस विश्व रिकॉर्ड को पुनः अपने नाम करने का संकल्प किया। इस तरह 12 जनवरी 2017 को वर्ल्ड रिकॉर्ड को तोड़ते हुए उन्होंने 3 घंटे 33 मिनट 33 सेकंड तक शीर्षासन करते हुए एक बार पुनः वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कराया। इस विश्व रिकॉर्ड की विशेषता यह थी कि इसमें जयपाल जी को 3 घंटे 33 मिनट 33 सेकंड के बाद गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की टीम ने शीर्षासन प्रदर्शन को रोक देने का आदेश दिया था क्योंकि GBWR की गाइडलाइन के अनुसार इतने समय से अधिक समय तक शीर्षासन करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता था अतः 3 घंटे 33 मिनट 33 सेकंड के बाद शीर्षासन के इस रिकॉर्ड को सदा के लिए क्लोज करते हुए इसे जयपाल जी के नाम कर दिया गया। यह एक अद्भुत घटना थी जिसमे किसी विश्व रिकॉर्ड्स को उसकी अधिकतम सीमा तक किसी ने पंहुचा दिया हो।
इस विश्व रिकॉर्ड्स के बाद जयपाल जी ने अपना जीवन योग को ही समर्पित करने का निर्णय लिया एवं आपने योग में स्नातकोत्तर की उपाधि हाँसिल की। इसके साथ जयपाल जी योग के प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण के कार्य में लग गए। पूज्य स्वामी रामदेव जी ने 18 हज़ार योग शिक्षकों के प्रशिक्षण की महती जिम्मेदारी जयपाल जी को सौंप दी जिसका निर्वाहन आपने बहुत जिम्मेदारीपूर्वक किया। 10 अप्रैल 1995 को जन्मे जयपाल प्रजापति जी योग क्षेत्र में एक आभायमान नक्षत्र बन तेजी से सम्पूर्ण जगत को अपनी रोशनी से प्रकाशमय करने की दिशा में तेजी से अग्रसर हैं।