संसार में प्रत्येक जीव अपने मूल स्रोत, शाश्वत चैतन्य स्वरूप से वियोजित होता है। केवल मानव जीवन में यह संभावना होती है कि वह अपने मूल स्रोत को पहचान कर, चैतन्य स्वरूप की ओर लौट कर उसमें एकीकार हो सके। भगवान श्री कृष्ण जिस कर्म फल की बात भगवद गीता में करते हैं, उसी कर्मफल की बात जैन धर्म में भी बताई गई है। जैन धर्म मनुष्य को स्वयं अपने भाग्य का निर्धारक मानता है जिसके अनुसार मनुष्य अपने जीवन का खुद ही उत्तरदायी होता है, उसके सभी सुख और दुख उसके कर्मों पर निर्भर करते हैं। किसी भी कार्य की सफलता तीन बातों पर निर्भर होती है – श्रद्धा, ज्ञान और क्रिया। जैन धर्म (Jainism) में इन्हीं को सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान एवं सम्यक चरित्र कहा गया है। सच्चे ज्ञान का होना प्रत्येक कार्य के लिए अतिआवश्यक होता है, इसे ही सम्यक ज्ञान कहा गया है, जिसे प्राप्त करने के तरीके जैन धर्म में वर्णित है। यह पाँच तरह के हैं – मति, श्रुति, अवधि, मनः पर्याय एवं कैवल्य। इंद्रियों एवम् मन द्वारा जो ज्ञान प्राप्त होता है, उसे मति कहते हैं तथा जो ज्ञान दूसरों के मन के विचारों को जान लेता है, उन्हें मनः पर्याय कहते हैं। दूसरों के मन को जान लेना आसान नहीं होता है लेकिन एक सच्चा गुरु तो सब जान लेता है तभी वह उचित मार्ग तथा उत्तम उपाय सुझाता है।

जैन परंपरा में ज्ञान के जटिल तरीकों को भी सरल एवं सहज रूप में सुलभ कराने के लिए गुरुजनों ने काफी साधना की है, लोगों को लाभान्वित भी किया है। इसी कड़ी में इस परंपरा के प्रतिष्ठित अनेक अवतारों ने राजपद को तृणवत मान, उसे त्यागकर जनकल्याण का पथ अपनाया है। उसी परंपरा को आगे बढ़ाने का कार्य अभी भी जारी है और उसमें सबसे अहम बात यह है कि इस श्रेष्ठ परंपरा के संवाहक के रूप में अति महती कार्य एक विदुषी परम पूजनीया डॉक्टर प्रतिभा पावनी जी (Dr. Pratibha Pavani) द्वारा किया जा रहा है। जैन परंपरा में श्रेष्ठतम मनीषी साधकों का अवतरण होता रहा है, परंतु मातृ सत्ता के प्राकट्य का अभाव रहा है। आपका जन्म राजस्थान के जोधपुर में एक धार्मिक परिवार में श्री नवरत्नमल रांका जी और नियागश्री जी के घर 29 जनवरी 1978 को हुआ था कालांतर में आपकी माताजी और अनुजा ने भी गृहस्थ जीवन छोड़कर साध्वी जीवन अपना लिया था। आपने जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय (Jai Narain Vyas University) राजस्थान, जोधपुर से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत चमचमाते ग्लेमर जगत में बेहतरीन कैरियर बना लिया था तथा गृहस्थ्य धर्म का अनुपालन करते हुए विवाह भी किया। बावजूद इन सबके आपका मन इन सांसारिक बंधनों में रम नहीं रहा था, सदैव मन में अकुलाहट एवं इन सब से मुक्त होने की बेचैनी रहती थी। तभी आपका पूज्य गुरुदेव विराट शांति जी (Shri Virat Shanti) से साक्षात्कार होता है, उन्होंने आपकी दिव्य आभा को पलभर में भांप लिया और जान गए कि आप इस सांसारिक भ्रम जाल में बंधने नहीं आई हैं, अपितु लोगों को इससे मुक्त कराने हेतु आपका अवतरण हुआ है। पूज्य गुरुदेव जी की आभा ने आपको अब सब कुछ त्यागने हेतु स्वतः उत्सुक कर दिया। फलतः विवाह के नौ वर्ष बाद आपने गृहस्थ धर्म को त्याग कर क्रांतिकारी कदम उठाते हुए साध्वी जीवन को अपने जीवन का आधार बनाया ऐसा जैन समाज में इतिहास में कभी नहीं हुआ था जब किसी नारी शक्ति ने विवाह के कुछ वर्षो बाद ही ऐसा अप्रत्याशित कदम उठाया हो काफी आलोचनाओं के बाद भी आप तटस्थ रही, सबसे बड़ी बात है कि आपने अपने आर्यपुत्र का दूसरा परिणय करवाकर उनके संसार को भी बिखरने नहीं दिया। इसके बाद आप अखंड साधना करने लगी तथा गहन ज्ञानार्जन में तल्लीन हो गई और गुरुवर के बताये पथ पर अग्रसर हो गयी। गुरुवर ने आप को साधिका का नाम दिया (साध्वी और गृहस्थ के बीच की कड़ी है साधिका)। आप साध्वी वैभव श्री (Sadhvi Vaibhav Shri) महाराज सा की सुशिष्या है उन्होंने आपको जैन धर्म के अनेक गूढ़ रहस्यों को समझाया है।

हम जानते हैं कि मनुष्य किसी न किसी व्याधि, बंधन, जाल आदि में फंसा हुआ है, परेशान है तथा उससे निवारण का मार्ग खोजता रहता है, और उसीमे भटकता भी रहता है परंतु सम्यक मार्ग दिखाने वाले, सम्यक ज्ञान दर्शन कराने वाले एवं सम्यक चरित्र पथ का निर्माण कराने वाले गुरु के अभाव में उलझा रहता है। पूजनीया साध्वी प्रतिभा पावनी जी के जीवन का तो अब यही उद्देश्य ही हो गया है, कि अधिकाधिक लोगों के कष्ट का निवारण कर उन्हें प्रसन्नता के वातावरण में प्रविष्ट करा सकें। इसके लिए आप प्रकृति की शक्तियों, ग्रहों, उर्जा, मंत्र आदि पर गहन चिंतन, मनन एवं साधना करती रहती है। आपका कहना है कि मंत्रों में बहुत शक्ति होती है और मंत्रों (mantra) के सही उच्चारण से ऑरा (aura) में परिवर्तन होता है तथा सकारात्मक ऊर्जा से मन मस्तिष्क और शरीर में इस ऊर्जा का संचार होता है। आपने इस ऊर्जा को समझा और इसका सूक्ष्म अध्ययन किया साथ ही ज्योतिष शास्त्र के वैज्ञानिक पहलुओं और वास्तु का गहन शोध कर आपने उसमें डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की साथ ही लगातार मंत्रो के जप से आपने अपने अंदर एक आध्यात्मिक ऊर्जा को जाग्रत किया जिससे आप लोगों की बेचैनी, उनके प्रश्नों को पल भर में जानकर उन्हें सम्यक उपाय बताने लगी। आपकी गहन साधना का यह असर हुआ कि मात्र 2 मिनट में ही किसी भी व्यक्ति के अंतःकरण की जिज्ञासा का उत्तर देकर उन्हें संतुष्ट कर देती हैं। एक बार आपके एक अनुयाई ने आपकी इस विशेष ऊर्जा को देखकर कहा आप तो इतनी तीव्रता से लोगो की समस्या को समझकर उत्तर दे देती है ये तो अपने आप में विश्व कीर्तिमान हो सकता है, क्यों न इसे वर्ल्ड रिकॉर्ड के रूप में दर्ज कराया जाए। आपके सहमत होने के बाद विश्वविख्यात संस्था गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस (Golden Book of World Records) के कार्यालय से संपर्क किया गया। 27 नवंबर 2019 को गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्डस की टीम के सम्मुख आभामंडल मापन यंत्रों (aura measuring device) की सहायता से द्रुतगति से 100 लोगों की आभा को समझ कर उसका मूल्यांकन कर उनका उत्तर प्रस्तुत करने के चलते आदरणीया साध्वी डॉ प्रतिभा पावनी जी का नाम गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में फास्टेस्ट हंड्रेड ऑरा इमानेशन इवालुएशन इन रिले (Fastest Hundred Aura Emanation Evaluation in Relay) नामक शीर्षक से वर्ल्ड रिकॉर्ड में (World Record) दर्ज हुआ, जिसमे 100 लोगो का आभा मापन आपने केवल चार घंटे, पंद्रह मिनट्स और बीस सेकण्ड्स (4H:15M:20S) में कर दिखाया।

आज आप लोगों के कष्टों को दूर करने के मेडिटेशन वर्कशॉप (meditation workshops) भी करती है साथ ही जैन पूजा और अनुष्ठान (Jain rituals and worship) भी करवाती है और हिन्दू रीति-रिवाजो से लोगों की समस्याओ के हल के लिए अभिषेक, यज्ञ, हवन भी करवाती हैं, इसके अलावा वास्तु और ज्योतिष विद्या से भी परेशानियों का निवारण करती हैं। लोगों की समस्याओं को सुनने एवं जन कल्याण हेतु आपने पूना में ओजस मैडिटेशन एंड हीलिंग सेंटर (Ojas Meditation & Healing Centre, Pune) स्थापित है। आज आपके लाखों अनुगामी हैं जिनका आप पथप्रदर्शन कर उन्हें जीवन जीने का सरल, सहज एवं सम्यक तरीका सिखाती हैं। आपके लिए बड़े से बड़े अवॉर्ड एवं सम्मान बौने हैं, बावजूद इसके अनेक उच्चस्थ सम्मान प्रदान कर लोग अपने को गौरवान्वित समझते हैं।