नुसरत अली ,जगजीत सिंह साहब की सुध बुध खो देने वाली गजलें हो अथवा अनेक कठिन से कठिन तालों, जैसे कि झपताल ,दीपचंदी ,दादरा, धमाल ,झुमरा में मंत्रमुग्ध कर देने वाले शास्त्रीय संगीत का गायन हो ।भजन हो या कि मन को आनंदित कर देने वाले फिल्मी तराने या सूफिया अंदाज में कव्वाली हो ,जब इन्हें गीत संगीत की विधा से जुड़े हुए किसी जानकार, अनुभवी संगीतज्ञ द्वारा गायन करते सुना जाता है तो मन को बेहद सुकून मिलना स्वाभाविक ही है।
विभिन्न मंचों पर अयोध्या निवासी स्वामी मानस दास शरभ (Swami Manas Das Sharabh) को ऐसी असाधारण प्रस्तुति करते देख किसी को यकीन नहीं होता है कि माया मोह से विरक्त एक सन्यासी जीवन को जीने वाला व्यक्ति संगीत का इतना अव्वल दर्जे का पाखी और संगीतज्ञ हो सकता है। भारतीय संस्कृति की तो यह खासियत ही है कि इस धरती पर एक से बढ़कर एक संत जन आए ,जिन्होंने अपनी संगीत साधना से न केवल स्वयं को धन्य बनाया अपितु संगीत के खजाने को भी समृद्ध बनाने में अतुल्य योगदान दिया है।
मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में ही गृह त्यागने के उपरांत आपने सुर तथा साधना को ही अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया ।आपकी अलौकिक एवं असाधारण प्रतिभा को देखते हुए परम पूज्य गुरुदेव श्रीयुत आचार्य डॉक्टर रामानंद जी का आपको अपार स्नेह मिला। आपने दैहिक ,-अलौकिक सुख को त्याग कर समस्त जगत के कल्याण की भावना से ओतप्रोत होने के कारण सन्यास जीवन को वरीयता दी ।इसके साथ ही वेद ,वेदांग आदि का भी गहन ज्ञान अर्जित किया।
प्रकांड संगीत साधक श्रीयुत राम मनोहर दास त्यागी जी, पूज्य राम किशोर दास जी तथा पंडित गौरी शंकर दास महाराज जी के चरणों में रहकर आपने सुर संगीत का गहन ज्ञान प्राप्त किया। वैष्णो परंपरा के संत होने के बावजूद आप की गिनती श्रेष्ठतम संगीतज्ञ में की जाती है ।देश के कोने कोने से विविध प्रकार के संगीतमय कार्यक्रमों हेतु आप को अक्सर आमंत्रित किया जाता रहता है ।आप शास्त्रीय संगीत के विविध सुसुप्तप्राय अवस्था को प्राप्त हो रहे रागों को जागृत कर जन-जन में लोकप्रिय बनाने के लिए भी अत्यंत कठिन साधना कर रहे हैं ।मार्गी पद्धति से निबद्घ स्वामी मानस दास जी यदि कीर्तन गाते हैं तो वह भी शास्त्रीयता के पुट से ओतप्रोत होता है या यूं कहें कि आप कीर्तन भी झपताल में गाते हैं तथा शास्त्रीय संगीत के साथ कदापि समझौता नहीं करते हैं। वर्तमान दौर में आमजन विशेषकर युवाओं को शास्त्रीय संगीत के प्रति आकर्षित करने के लिए कठिन पदों को सरल करते रहते हैं ।मात्र 28 वर्षीय अयोध्यावासी स्वामी मानस दास शरभ जी ,सन्यास जीवन के साथ-साथ संगीत की निष्णांत साधना के द्वारा शास्त्रीय एवं आधुनिक संगीत के उन्नत हेतु निरंतर प्रयासरत हैं।