एक दिन सुबह-सुबह हरियाणा प्रांत के करनाल जिले के रहने वाले श्री नरेंद्र अरोड़ा जी अखबार पढ़ रहे थे अचानक उनकी नजर एक खबर पर पड़ी जिसमें क्रांतिकारियों की प्रतिमाओं की दयनीय दशा के बारे में विस्तार से छपा हुआ था कि कैसे शहीदों की प्रतिमाएं अनाथ बच्चों की तरह हो गई है। यह खबर पढ़ते ही आपका दिलो-दिमाग जैसे सन्न सा हो गया और यह सोचने लगे कि जिन शहीदों के बारे में बचपन से खूब पढ़ता था, उनकी यह हालत ।कई दिनों तक मन में वही खबर फिल्म की तरह चला करती, सोते जागते हरदम ।मन हरदम व्यग्र रहता क्या किया जाए ,इसी उधेड़बुन में अन्य कार्य भी प्रभावित होने लगे ।अब श्री नरेंद्र जी जिधर भी निकलते गली, चौराहे, पार्क जहां भी महापुरुषों की प्रतिमाएं दिखाई पड़ती उन्हें लगता जैसे स्वतंत्रता, विकास, लोकतंत्र ,शासन प्रशासन के नाम पर उन प्रतिमाओं को छला जा रहा है, उनका उपहास उड़ाया जा रहा है, गाहे बैगाहे जब उन प्रतिमाओं की साफ सफाई होते देखते तो मन ही मन इस नौटंकी मय अभिनय को देख झल्ला जाते ।नरेंद्र अरोड़ा (Narendra Arora) जी की यह पीड़ा बजाए घटने के बढ़ती ही जा रही थी। क्रांतिकारियों की प्रतिमाओं की देखरेख ,साफ सफाई की शुरुआत आप ने व्यक्तिगत स्तर पर शुरू कर दी। शुरुआत में नरेंद्र अरोड़ा जी अलग-अलग स्थानों पर स्थापित प्रतिमाओं के पास जाते उनकी साफ सफाई करते धीरे-धीरे उनकी यह जीवन शैली का अनिवार्य हिस्सा होता चला गया। प्रारंभ में श्री नरेंद्र अरोड़ा जी के काम को लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया कुछ लोग तो उपहास तक उड़ाने से भी नहीं चूकते थे लेकिन आप ठहरे वीर सपूत कहा जाता है कि लीक छोड़ तीनहीं चले शायर सिंह सपूत।आप तो भारत माता के सच्चे सपूत हैं। अब आप अपने पथ पर चलना शुरू कर चुके थे, एक समरस संत की तरह। हास उपहास से परे ,न कोई स्वार्थ न कोई ख्वाहिश, अभिलाषा थी तो मात्र यही कि महान स्वतंत्रता सेनानियों की यादों को हर दिल में संजोया जाए तथा उनकी याद में लगी प्रतिमाओं की परवरिश बेहतर तरीके से की जाए। कुछ समय उपरांत आपने इस कार्य हेतु एक संगठनात्मक तरीका अपनाने को सोचा और वर्ष 2003 में एक समिति की स्थापना की जिसका नाम रखा प्रतिमा रक्षा सम्मान समिति, आप इसके संस्थापक अध्यक्ष हैं ।इस समिति की स्थापना हो जाने से अब आपके काम में तेजी आ गई। धीरे-धीरे लोग भी आपके काम को संजीदगी से लेने लगे ।अब जो भी देखता सोचने पर मजबूर हो जाता एक युवा अपना कारोबार छोड़कर इस काम में जुटा है तो कुछ तो हम सबसे अलग अवश्य है अन्यथा आज के स्वार्थ तथा के दौर में आदमी अपने ही महिमामंडन में व्यस्त रहता है ।धीरे-धीरे अन्य लोग भी आपके साथ इस कार्य में साथ देने के लिए आगे आने लगे ।आपने सभी का तहे दिल से स्वागत किया। इस तरह धीरे-धीरे एक छोटी सी टीम बनने लगी ,अब आप अपने कार्य को लघु स्तर से बढ़ाकर बड़े पैमाने पर किए जाने को सोचने लगे।
आपके इस पावन काम को जन सहयोग मिलना जब शुरू हुआ तो वह बढ़ता ही गया हां सरकारी इमदाद की छोटी सी धारा की एक बूंद भी इस कार्य हेतु शायद काबिल नहीं समझी गई। श्री नरेंद्र अरोड़ा जी ने अपने कार्य को शहीदों की प्रतिमाओं की साफ-सफाई तक ही सीमित नहीं रखा अब इसे एक और पवित्र स्वरूप तक पहुंचाने का पुनीत कार्य किया ।आपने शहीदों के परिजनों की भी सुध लेने की भी कोशिश की। शासन प्रशासन द्वारा शहीदों के नाम पर बड़ी-बड़ी कल्याणकारी अलग-अलग तरह की योजनाएं चलाई जाती हैं करोडो रुपए का बजट भी खर्च किया जाता है लेकिन शहीदों के परिजनों की सुध लेने के बारे में किसी का ध्यान तक नहीं आकृष्ट होता है ।आज अनेक शहीद के परिजन अत्यंत ही जर्जर आर्थिक हालात में रह रहे हैं ।जिन शहीदों के नाम पर शासन प्रशासन द्वारा उनकी जयंती मनाने में भारी-भरकम धनराशि खर्च की जाती है ,उन्ही शहीदों के परिजनों की खस्ता हालत किसी को नहीं दिखाई देती है ।श्री नरेंद्र अरोड़ा जी ने बजाए किसी से दुखड़ा रोने के अपने दम पर इन शहीदों के परिजनों को आमंत्रित कर सम्मानित करने का अति पावन कार्य प्रारंभ किया ।आपने एंटी करप्शन फाउंडेशन नामक वजनदार संगठन की स्थापना की अब आप न केवल स्थानीय स्तर पर ही अपितु संपूर्ण देश में फैली हुई शहीदों की प्रतिमाओं की साफ सफाई सुरक्षा का जिम्मा उठा लिया है ।एंटी करप्शन फाउंडेशन न केवल यह कार्य करता है वरन संपूर्ण विश्व में समाज के उन्नयन में लगी प्रतिभाओं को प्रतिवर्ष एक गरिमा गरिमा में कार्यक्रम आयोजित करके उन्हें सम्मानित भी करता है। इस पुनीत कार्य से आज प्रत्येक समुदाय एवं पेशे से जुड़े हुए लोग अपने को जोड़कर गौरवान्वित महसूस करते हैं। यह सब श्री नरेंद्र अरोड़ा नामक जादुई व्यक्तित्व एवं त्यागी महापुरुष के चलते ही संभव हो सका है ।श्री नरेंद्र अरोड़ा जी की असाधारण लगन ,सच्ची भावना का प्रतिफल है कि आप अभी तक 100 =200 नहीं 5000 से भी अधिक ऐसे व्यक्तियों को सम्मानित कर चुके हैं जिनके सामाजिक सरोकारों और कार्यों से नैतिकता मानवता और सच्चाई की कड़ियां अभी भी विद्यमान हैं ।आपने उन लोगों की न केवल सुध ली जिनके पूर्वज हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए, और उनके परिजनों की कोई सुध लेने वाला नहीं है अपितु उन परिजनों को यह एहसास कराया कि सत्ता पर बैठे हुए बड़े-बड़े मठाधीश भले ही हमारे वीर सपूतों को भूल जाएं लेकिन देश की आवाम की धड़कनों में अभी भी सरदार भगत सिंह, उधम सिंह, खुदीराम बोस, चंद्रशेखर आजाद, यतींद्र नाथ, दुर्गा भाभी सहित तमाम महापुरुषों की प्रतिध्वनि सुनाई देती है।