मनुष्य के शरीर में हृदय यानी दिल का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है जो कि शरीर के लगभग मध्य में स्थित होता है, इसीलिए मध्य में रहने वाले को दिल के करीब होने का दर्जा स्वतः मिल जाता है, चाहे वह व्यक्ति हो, स्थान हो अथवा कला। मध्य प्रदेश के हृदय के रूप में दर्जा प्राप्त है मालवा को, और मालवा का दिल बसता है वहां की लोक कलाओं में। ऐसा हो भी क्यों न, मालवा का सांस्कृतिक परिवेश, साहित्यिक, सामाजिक एवं प्राकृतिक वातावरण भी लोककलाओं के अमूल्य खजाने से भरा पड़ा है। इस अनमोल कोष को चिरायु बनाए रखने हेतु मालवा के कलासागर से मंथन कर, अमृत रूपी कला कोष से नूतन पीढ़ी को अमृत पान कराकर, संपूर्ण जगत को आह्लादित कराया जा सकता है। इस बेमिसाल कार्य को अमलीजामा पहनाने का प्रयास कुछ ही लोग कर रहे है एवं उनमें एक प्रमुख स्तंभ है उज्जैन निवासिनी आदरणीया डॉक्टर पल्लवी किशन जी (Dr. Pallavi Kishan)।

डॉ. पल्लवी किशन जी ने मालवा की अनमोल लोककलाओं को कालजयी बनाने हेतु उनकी कलात्मक आभा से संपूर्ण विश्व को आलोकित कराने तथा आज की पीढ़ी को अपनी इस गौरवमयी उपलब्धि से जोड़ने हेतु अपना संपूर्ण जीवन न्योछावर कर दिया है। आपने मालवा की अद्भुत एवं प्राचीन कलाओ को दुनिया के सामने पुनः संस्थापित करने कि महत्वाकांक्षा पाली एवं उसको प्राप्त करने के लिए एक बहुत बड़े कार्य को करने की ठानी उसके बाद ऐसी अनमोल साधना, इन विदुषी द्वारा की गई कि वह गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड ( Golden Book of World Records) में सबसे बड़ी संझा (Largest Sanja) शीर्षक के साथ दर्ज होकर विश्व कीर्तिमान में अंकित हो गई। संझा नामक ये लोककला, मालवा के धड़कनों में रचती- बसती है, लेकिन दुर्भाग्यवश आज के विकास के नूतन मानकों के साथ-साथ, ज्यों-ज्यों लोक कलाओं के पारखी गण, चिंतक, मनीषी, एक-एक कर हम लोगों के बीच से विदा होते जा रहे हैं त्यों- त्यों, आज की पीढ़ी लोककलाओं से दूर हटती जा रही है। इसी पीड़ा को समेटे डॉ. पल्लवी किशन जी ने यह प्रण लिया कि मालवा की लोककलाओं का झंडा एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय पटल पर लहराने का प्रयास करूंगी। इसी कड़ी में आपने प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्थान (Pratikalpa Sanskratik Sansthan) स्थापित करके मालवा की विख्यात लोककला संझा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाने हेतु जी जान से लग गई। आपके बेहतरीन मार्गदर्शन में वर्ष 2006 से एक दिवसीय संजा लोकोत्सव का आयोजन शुरू किया गया जो धीरे-धीरे दो दिवसीय और अंततः वर्तमान में आठ दिवसीय मनाया जाने लगा। इस महोत्सव ने मालवा की विलुप्त हो रही लोककलाओं के लिए संजीवनी बूटी के समान काम किया साथ ही यह मालवा की लोक कला के लिए वरदान साबित हुआ। डॉ. पल्लवी किशन जी बहुआयामी प्रतिभा की धनी हैं एवं प्रोफेशन के लिहाज से आर्थिक मामलों की विद्वान एवं शिक्षिका हैं। आपका इतना भर परिचय कराना कला जगत के प्रति की जा रही आपकी साधना की अवमानना होगी। कला के प्रति प्रेम का पाठ तो आर्टिस्ट रहे, पिताजी श्री गुलाब सिंह यादव जी ने आपको बचपन में ही अपने प्यार दुलार के साथ ही सिखा दिया था, जिसमें मां श्रीमती शारदा देवी जी ने अपने ममता की छांव में पुष्पित-पल्लवित होने का भरपूर अवसर दिया। फलतः चार विषयों से पोस्ट ग्रेजुएट तथा अर्थशास्त्र से पीएचडी करने के साथ-साथ, डॉ. पल्लवी किशन जी ने एक तरफ तबला में डिप्लोमा तो दूसरी तरफ गायन में भी किया। वही जहा थिएटर का प्रशिक्षण लिया तो दूसरी तरफ भरतनाट्यम एवं कत्थक का भी गहन अध्ययन किया। इसके चलते आपके भीतर एक कलाकार, कला का पारखी, उन्हें सहेजने वाला, उनका विकास करने वाला हृदय सदैव धड़कता रहा एवं इसीलिए आप अपने प्रोफेशन से इतर होकर लोक कलाओं के उन्नयन हेतु सदैव साधना रत रही हैं।

संझा लोकोत्सव के माध्यम से आपने मालवा की लोककला संझा को, न केवल राष्ट्रीय स्तर पर अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने का कार्य किया है। वर्ष 2017 में आपके योग्य निर्देशन में संझा लोकोत्सव आयोजित किया गया जिसमें 60 कलाकारों ने मिलकर 24 फिट लंबी तथा 24 फिट चौड़ी, 576 वर्ग फिट आकार की संझा कलाकृति बनाई गई, यह 24 सितंबर 2017 को “विश्व की सर्वाधिक बड़े आकार की संझा” (Largest Sanja) होने के नाते गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड (GBWR) में दर्ज हुई। इस असाधारण उपलब्धि पर डॉ पल्लवी किशन जी के प्रशंसकों में खुशी की लहर दौड़ गई। मालवा की लोक कलाओं को अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि दिलाने वाली इस कलाकार के द्वारा संझा का प्रदर्शन देश के बाहर भी अनेक देशों में कराया गया है तथा उसकी अत्यधिक प्रशंसा भी प्राप्त हुई है। आपने कत्थक के क्षेत्र में भी देश का नाम अंतराष्ट्रीय स्तर तक किया हैI