“दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मां” के अवार्ड का सम्मान एक नवयुवक को दिए जाने की घोषणा हो एवं वह एक ऐसे नवयुवक को जिसकी उम्र महज 30 वर्ष हो तो सुनने पर एकाएक यकीन नहीं होता है! आखिरकार यकीन हो भी कैसे, किसी पुरुष को मम्मी कैसे कहा जाता सकता है? वह भी आधिकारिक तौर पर। लेकिन यह सच्चाई है, मध्यप्रदेश के इंदौर निवासी श्री आदित्य तिवारी (Aditya Tiwari) जी की, जो पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में पुणे में कार्यरत रहे है।
अनाथ एवं गरीब बच्चों की सेवा भावना से लबरेज होने के चलते आदित्य जी, प्रत्येक वर्ष की भांति 13 सितंबर 2014 को अपने पिताजी के जन्मदिन पर इंदौर स्थित मिशनरी आफ चैरिटी के ज्योति निवास गए। वहां उनकी नजर अचानक एक लगभग 6 महीने के बालक पर पड़ती है जिसे छूने पर वह आपकी तरफ ऐसी नजरों से देखने लगा कि आपकी नजरें उस पर गड़ गई। घर वापस आने पर पूरी रात उसी अबोध बच्चे का चेहरा आदित्य जी के मन में घूमता रहा और रात भर नींद नहीं आई। अबोध की नजरें आपको बार-बार अपनी तरफ खींच ले जाती और अंततोगत्वा आदित्य जी ने उस बच्चे को गोद लेने का विचार मन ही मन बना लिया। लेकिन जैसे वहां के स्टाफ से आपने बच्चे के बारे में जानकारी की तो सभी एक स्वर से बतलाया कि वह बच्चा अत्यंत ही खतरनाक बीमारी डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त है तथा वह कुछ ही दिनों के लिए इस धरती पर मेहमान है। यह सब सुनने व समझने के बावजूद भी आदित्य जी ने अपने विचारों को त्यागा नहीं एवं अगली मुलाकात में संबंधित अधिकारियों से उस बच्चे को गोद लेने के अपने विचार से अवगत कराया। आपके विचारों को सुनकर वहां के लोगों ने कानूनी पहलुओं की जानकारी देते हुए बताया गया कि कोई सिंगल पेरेंट्स वह भी जब तक कि उसकी आयु 30 वर्ष से ऊपर ना हो बच्चे को गोद नहीं ले सकता है यह जानकर एक बार पुनः आदित्य जी के मन में निराशा उत्पन्न हुई लेकिन वह अल्पकालिक रही और आपने हार ना मानते हुए इस कायदे कानून को बदलवाने के लिए लड़ाई लड़ने का संकल्प मन ही मन लिया और जुट गए इस कार्य में। घर परिवार, रिश्तेदार, मित्र, हितैषी कोई भी आपके इस निर्णय को सुनने पर सहमत नहीं था अपितु अधिकांश लोग आप के विरोध में थे बावजूद इन सब के दृढ़ इच्छाशक्ति के धनी श्री आदित्य तिवारी जी ने अपने इरादे पर अटल हो कानूनी लड़ाई लड़ाई प्रारंभ कर दी। आपने उस हर दरवाजे पर दस्तक दी जहां से इस बच्चे को पाने हेतु सफलता की उम्मीद दिख रही थी। तकरीबन डेढ़ साल चली लंबी लड़ाई के बाद आपको विजय मिली तथा उस बच्चे को गोद लेने का अधिकार जनवरी 2016 में मिला इसके साथ ही भारत सरकार द्वारा इससे संबंधित नियमों एवं उप नियमों में शिथिलता प्रदान की गई।
आदित्य जी ने इस प्यारे से बच्चे का नाम रखा अवनीश उर्फ बिन्नी तथा उसके पालन पोषण के लिए श्री आदित्य तिवारी जी ने अपनी बेहतरीन सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़ दी। नौकरी तो आपने छोड़ दी लेकिन आपके इस कार्य की अब चारों तरफ खूब सराहना होने लगी। देश-विदेश से आपको बड़े बड़े संस्थानों द्वारा मोटिवेशनल स्पीच देने के लिए आमंत्रित किया जाने लगा। आपका यह असाधारण कार्य गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड (Golden Book of World Records) (GBWR) में सबसे कम उम्र (28 वर्ष 04 महीने) में सिंगल परेंट के रूप में एक दिव्यांग बच्चे की गोद लेने वाले व्यक्ति इस शीर्षक के साथ दर्ज हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) ने भी आपके इस असाधारण कार्य को सराहाते हुए आमंत्रित किया तथा 8 मार्च 2020 को आपको एक प्रतिष्ठित संस्थान द्वारा “बेस्ट मम्मी आफ द वर्ल्ड” (Best Mummy of the World) का खिताब प्रदान कर आपकी साधना को सलाम किया गया।
आज श्री आदित्य तिवारी जी संपूर्ण विश्व के लिए एक रोल मॉडल बन चुके हैं खासकर उन बच्चों के लिए जिन्हें पैदा करने वाले तक उन्हें पालने-पोसने से इनकार कर देते हैं, जिन्हें कोई गोद नहीं लेता तथा जिन बच्चों को बेहद नारकीय जिंदगी जीने को मजबूर होना पड़ता है।