भारत कृषि प्रधान एवं ग्रामीण प्रधानता वाला देश है। आबादी का एक विशाल हिस्सा अभी भी गाँव में रहता है। यह एक दुर्भाग्य का विषय है कि काफी संख्या में गरीब, बेरोजगार आज भी हमारे देश में हैं और अत्यंत ही खेद का विषय यह है कि देश के हर कोने में भीख मांगने वालों की भी बड़ी संख्या है।

उत्तराखंड (Uttarakhand) की वादियों को तो प्रकृति ने अपने प्राकृतिक स्वरूप में काफी समृद्ध बनाया है लेकिन उसी प्राकृतिक छटाओ के बीच गरीबी से अभिशप्त दर-दर की ठोकर खाते, भीख मांगते बच्चों को जब एक युवती ने देखा तो उन्हें अपने बचपन के संघर्षमय दिन याद आ जाते हैं और वह भावुक हो उसी समय तय करती हैं अब वह भीख मांग रहे बच्चों के लिए कुछ करेंगी तथा इन्हें इस अभिशाप से मुक्त करा कर ही रहेंगी। आज उस देवी की देखरेख में सैकड़ों बच्चे पढ़-लिख रहे हैं, बेहतरीन जीवन जी रहे हैं जो कभी भीख मांग कर जीवन यापन किया करते थे। वह ममतामई माँ एक देवी की तरह हजारों-हजार इंसानों के जीवन में एक कतरा रोशनी बांट रही है। यह देवी आज संपूर्ण उत्तराखंड की शान बन गई है तथा लोग उन्हें बड़े आदर से आदरणीया गुंजन बिष्ट अरोड़ा जी (Ms. Gunjan Bisht Arora) के नाम से जानते हैं।

आदरणीया गुंजन अरोड़ा जी के पिता श्री हीरा सिंह बिष्ट जी का देहावसान तब हो गया था जब आप मात्र ढाई वर्ष की थीं। माँ ने बेटी को अकेले पाला पोसा तथा उच्च शिक्षा की पढ़ाई कराई। श्री संदीप अरोरा जी नामक एक बेहतरीन एवं आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति से आपका विवाह हुआ और आप सुखमय जीवन जीने लगी। कुछ ही समय बाद जब आप गरीबों को देखती तो अपना सुख व्यर्थ लगने लगता, अब इस अंतर्मन की आवाज को आप बहुत दिन तक नहीं दबा पा रही थीं। अतः गुंजन जी समय निकालकर गरीब एवं भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाने लगी एवं कुछ समय उपरांत वीरांगना (Virangana NGO) नामक एक संस्था की स्थापना कर इस तपस्या में लग गईं। धीरे-धीरे आपकी मदद हेतु लोग आने लगे। वैसे तो गुंजन जी कभी किसी से आर्थिक मदद नहीं लेती है, पर बहुतेरे लोग पढ़ाई सम्बन्धित कुछ सामान लाकर आपके बच्चों को दे देते हैं। बहुत से लोग आपको पागल तथा सनकी भी कहते है लेकिन आप किसी की बातों पर ध्यान ना देकर गरीब बच्चों को पढ़ाने के इस पुनीत कार्य में लगी रहतीं है। भीख मांगकर जीवन व्यापन करने वाले कुछ गरीब बच्चों को पढ़ाने के सिलसिला जो आपने प्रारम्भ किया था वह कारवां धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। बहुत से अनपढ़ माता-पिता जिन्हें शिक्षा का महत्व पता नहीं होता वह स्कूल, पढ़ाई, उसके लाभ नहीं जानते परंतु गुंजन जी ने ऐसे माता-पिता को समझाया एवं बच्चों की पढ़ाई की बाधा को हटाया। यह बहुत कठिन कार्य था।

गुंजन जी समाज से बस इतना ही कहती हैं कि संभव हो तो अपने पुराने अथवा अनुपयोगी सामान एवं पुस्तके हमारे बच्चों को दे दीजिए। आज बहुत लोग आते रहते हैं और आपके कार्यों के समक्ष नतमस्तक हो अभिभूत होते रहते है। गुंजन जी गरीब बच्चों को तथा विपन्न, मजलूम व्यक्ति की हर तरह से मदद करने का प्रयास करती हैं। आपकी साधना को अब चहुं ओर सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। विभिन्न प्रकार के सम्मानो से आपको नवाजा जाता रहता है, पर करुणा के सागर को अपने में समेटे इस देवी के लिए तो असली सम्मान यह होता है जब जब कोई बच्चा भिक्षा के थैली को त्याग कर मुस्कुराते हुए शिक्षार्थ थैले को कंधे पर रख विद्यालय रूपी मंदिर की ओर चल पड़ता है।