स्कूल से लौटते ही, जल्दी से विद्यालय का कार्य निपटा कर छोटे भाइयों को अपना सहायक बनाकर, मोहल्ले के बच्चों को लेकर जुट जाते, फिर फिल्मों को बनाने व दिखाने में व्यस्त हो जाते थे। परिवारी जन बेटे को ‘किरन’ कह कर पुकारते थे। 5 जुलाई सन 1953 को पिता पंडित दिनेश मिश्र जी तथा माता श्रीमती शोभा देवी जी की गोद में जन्मे बालक किरन द्वारा फिल्मों को बनाने तथा दिखाने का कार्य, उस उम्र में ही किया जाता था जब वह विद्यालय में पढ़ते थे। इस कार्य के लिए न तो धन था और न तकनीकी एवं ना ही कलाकारों की फ़ौज। बस कुछ छोटी मोटी, टूटी-फूटी मशीनों को जोड़कर, रेडियो आदि का प्रयोग कर, कुछ विद्युत उपकरणों के सहारे कागज आदि के चित्रों को संकलित कर, इसी तरह की अन्य ढेर सारी फितरतों के सहारे एक छोटी सी फिल्मी दुनिया अक्सर भगवान श्री राम जी की नगरी अयोध्या के कटरा मोहल्ले में सजाई जाती थी, बालक किरन द्वारा। अयोध्या नगरी (Ayodhya, Uttar Pradesh) में कटरा मोहल्ले में स्थित घर के अगल-बगल बच्चों की तो पौ बारह हो जाती थी।
स्नातक की शिक्षा ग्रहण करने के समय आपकी चित्रकला के प्रति रुझान में क्रांतिकारी प्रगति हुई। अब आप एक से बढ़कर एक चित्र बनाने लगे परिणाम स्वरुप गोरखपुर विश्वविद्यालय (Gorakhpur University) से अच्छे अंकों के साथ स्नातक की डिग्री पूर्ण होने के उपरांत आपने आगरा विश्वविद्यालय (Agra University) से चित्रकला में पोस्ट ग्रेजुएट की शिक्षा ग्रहण करने हेतु प्रवेश लिया। वहां भी आप बेहतरीन छात्र रहे तथा प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। आपकी बेहतरीन योग्यता को देखते हुए उसी गोरखपुर विश्वविद्यालय में कला विभाग में प्रोफेसर के रूप में सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ जहां से आपने अपनी कला की शिक्षा ग्रहण की थी। नौकरी तो मिल गई पंडित किरण प्रताप मिश्र जी (Pandit Kiran Pratap Mishra) को, फिर भी मन हरदम उदिग्न रहता था। जिस विश्वविद्यालय की नौकरी पाकर लोग अपने को धन्य समझने लगते हैं तथा अपने को ज्ञान-गंगा का स्रोत मानने लगते हैं, वहीं पर आपके मन में न तो ठहराव लग रहा था और न संतुष्टि। आपके मन में तो हमेशा अपनी कला को एक विराट क्षितिज पर पहुंचाए जाने की भावना की रेल गतिवान रहती थी। आप एक बेहतरीन चित्रकार तो थे ही साथ ही उसके प्रोफेसर भी थे, लेकिन गीतों (songs) के प्रति झुकाव बढ़ता जा रहा था। गीतों की रचना और उनके उन्नयन हेतु मन में सदैव मंथन चलता रहता था।
ईश्वर ने अचानक एक दिन आपके लक्ष्य पूरा करने हेतु एक अवसर दिया, गोरखपुर विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य के दौरान आपको मुंबई से गीत लेखन का आमंत्रण मिला। इस आमंत्रण से मन में जैसे बिजली कौंध गई। घने अंधेरे में जैसे सूरज की किरणें दिखाई देने लगी फिर क्या था चल दिए मुम्बई और वहां पहुंचने पर आपको कव्वाली लिखने को कहा गया जिसे आपने कभी लिखा नहीं था। शुरुआत में थोड़ा कठिन तो लगा लेकिन आपके लिए कोई असंभव कार्य भी नहीं था। इस तरह “लेकिन” आपकी पहली फिल्म थी जिससे आपने फिल्मी जिंदगी की शुरुआत की। आपके द्वारा लिखे गए गीत को सन 1983 में आवाज के जादूगर लब्ध प्रतिष्ठित गायक महेंद्र कपूर जी (Mahendra Kapoor) और अनुराधा पौडवाल जी (Anuradha Paudwal) ने आवाज दी तथा श्री श्याम जी- घनश्याम जी (music composer Shyamji – Ghanshyam ji) ने संगीत निर्देशन दिया। ईश्वर ने इसी दौरान परम श्रद्धेय श्री ललित नाग जी (Mr. Lalit Nag) नाम के एक सच्चे हितैषी से मुलाकात कराई, जो फिल्म जगत में बेहतरीन एवं प्रतिष्ठित कला निर्देशक थे। उन्हें लगा कि इस शख्स में गुण तो है लेकिन उन्हें परखने वालों को अभी थोड़ा समय लगेगा। काफी सोच विचार कर श्री ललित नाग जी ने आपसे कहा कि फिल्म जगत की प्रतिस्पर्धा को आप अच्छी तरह समझिए। धीरे-धीरे आर्ट निर्देशक (art director) के रूप में मुंबई (Mumbai) से आपको अनेकों आमंत्रण आने लगे। वर्ष 1980 में प्रोफेसर की नौकरी को त्यागकर आप पूर्णरूप से इसी कार्य में लग गए, धीरे-धीरे कला के बजाय गीतकार एवं नव गीतकार के रूप में मुंबई में आपकी एक पहचान बन गयी।
आज जाने-माने गीतकार और साहित्य में नवगीतकार के साथ-साथ लब्ध प्रतिष्ठित चित्रकार के रूप में भी आपकी ख्याति है। आपके चित्रों (paintings) की देश विदेश में प्रदर्शनीयां लग चुकी हैं। अपने गीतों एवं भजन के माध्यम से आपने फिल्म जगत में एक विशिष्ट स्थान बनाया है। प्रख्यात फिल्मकार, टेलीविजन सीरियल निर्माता श्री बी आर चोपड़ा (B R Chopra) द्वारा निर्मित विख्यात टेलीविजन धारावाहिक महाभारत (TV serial Mahabharat) में आपकी ही लेखनी के कमाल को गीत के रूप में जनमानस ने सुना था। उस सीरियल के अंतिम गीत “महाभारत सा युद्ध न हो” ने तो धूम मचा दी थी। अनेक फिल्मों में आपके गीत प्रसिद्ध हुए हैं। आपकी विशिष्ट लेखन क्षमता ने बड़े से बड़े निर्माता निर्देशकों को अपना मुरीद बना लिया है। अनेक धारावाहिकों में भी आप की अद्भुत योग्यता देखने को मिलती है।
टेलीविजन धारावाहिक (Telivision serials) में महाभारत, तिरुपति बालाजी, दयासागर, चलें गांव की ओर आदि में आप के गीत बहुत चर्चित हुए हैं। इसके आलावा शिव पुराण, उपकार, देवर्षि नारद, जय गणेश, अभिनय, थोड़ा हकीकत थोड़ा फसाना, आदिशक्ति भगवती, निर्मला, सुनहरे पल, सुख-दुख, धर्म और हम, शक्ति, कसौटी तथा जिंदगी में भी आपने अपनी लेखनी का लोहा मनवाया है। घर घर की कहानी, जब अपने हुए पराए, कुलवधू, कसम से, कयामत, कस्तूरी इन सभी धारावाहिकों में पंडित किरण मिश्र जी की उस तड़प को महसूस किया जा सकता है जो बचपन से यह सब करने को बेचैन थी। ‘यह रिश्ता क्या कहलाता है’ तथा ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ यह ऐसे सीरियल हैं जिनके आने का इंतजार घरों में किया जाता रहता है। इसी तरह कहानी हमारे महाभारत की, मितवा, श्रद्धा, झांसी की रानी, भगवान परशुराम, महिमा शनिदेव की, विक्रम बेताल, माता पिता के चरणों में स्वर्ग, विदाई, सूर्य पुराण, शोभा सोमनाथ की, जय जगत जननी मां दुर्गा, जय जय बजरंगबली, शुभ विवाह में भी आप सशक्त हस्ताक्षर के रूप में दिखाई देते हैं। ‘अगले जन्म फिर बिटिया ही कीजो’ तो बेहद लोकप्रिय सीरियल है। माता की चौकी, बुद्ध, सर्वशक्तिमान, सिया के राम, नागिन, मेरे अंगने में, संतोषी माता, भक्ति में शक्ति, कवच सहित अनेक धारावाहिकों में अयोध्या के मिट्टी से निकले इस सोने की चमक दमकती दिखाई देती है।
अपनी जादुई आवाज से लोगों को मदहोश कर देने वाले, जिन्हें देश का गज़ल सम्राट कहना नितांत उचित होगा, परम श्रद्धेय स्वर्गीय जगजीत सिंह जी (Jagjit Singh) की अधिकांश गज़ल और अन्य रचनाएं आप द्वारा ही लिखी गई है। श्री जगजीत सिंह जी के पांच एल्बम भी आप द्वारा लिखे गए हैं। बालाजी टेलिफिल्म (Balaji Telefilms) के अधिकांश धारावाहिक में title song आपके द्वारा ही लिखा जाता है। फिल्म जगत का शायद ही कोई नामचीन संगीतकार हो जिसके साथ आपने काम न किया हो। बचपन में, अयोध्या स्थित अपने घर में टूटी-फूटी मशीनों आदि के सहारे, मोहल्ले के बच्चों को एकत्रित कर फिल्म दिखाने भी वाले पंडित किरण मिश्र जी के बारे में क्या कभी किसी ने सोचा रहा होगा कि आज दिखाए जाने वाले अधिकांश सीरियल के सुप्रसिद्ध गीत आपकी लेखनी से ही निकल कर घर-घर में रच बस जाएंगे। आपको तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति महोदय डॉ शंकर दयाल शर्मा जी (President Shri Shankar Dayal Sharma) के कर कमलों से सम्मानित किया गया, इसके अतरिक्त अन्य अनेक प्रतिष्ठित हस्ताक्षरों द्वारा भी आपको अनेक सम्मान प्राप्त हैं।