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क्या खुब कहा है किसी ने, बीतता वक़्त है, लेकिन। ख़र्च हम हो जाते हैं। कैसे "नादान"है हम दुःख आता है। तो,"अटक" जाते है! औऱ सुख आता है तो "भटक" जाते हैं।
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चाबी से खुला ताला बार बार काम मे आता है, लेकिन हथौड़े से खुलने पर दुबारा काम का नही रहता। इसी तरह संबन्धों के ताले को क्रोध के हथौड़े से नहीं बल्कि प्रेम की चाबी से खोलें।
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"उम्मीद" हमारी वह शक्ति है,जो हमें उस समय भी प्रसन्न बनाये रखती है। जब हमें मालूम होता है। कि "हालात" बहुत खराब हैं।
क्रोध हमारा एक ऐसा हुनर है, जिसमें फंसते भी हम हैं, उलझते भी हम हैं, पछताते भी हम हैं, और पिछड़ते भी हम ही हैं।