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- "दुनिया" के बड़े से बड़े साइंटिस्ट ये ढूँढ रहे है कि "मंगल ग्रह" पर "जीवन" है या नहीं पर "इंसान" ये नहीं ढूँढ रहा है कि "उसके जीवन में मंगल है या नहीं"
- दुनिया में दान जैसी कोई सम्पत्ति नहीं, लालच जैसा कोई और रोग नहीं, अच्छे स्वभाव जैसा कोई आभूषण नही, और संतोष जैसा और कोई सुख नहीं।
- जिस प्रकार "पानी" के बगैर, "नदी" का कोई मतलब नहीं रह जाता है, उसी प्रकार "मधुरता" के बगैर, "संबंधों" का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।
क्रोध हमारा एक ऐसा हुनर है, जिसमें फंसते भी हम हैं, उलझते भी हम हैं, पछताते भी हम हैं, और पिछड़ते भी हम ही हैं।