“शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा”

देश को आजादी काफ़ी त्याग, बलिदान, जद्दोजहद तथा संघर्ष के बाद मिली है यह हम सभी जानते हैं। लाखों-करोड़ों लोगों ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया है। वैचारिक स्तर पर रास्ते एकाधिक भले ही रहे हैं लेकिन उद्देश्य सभी का एक ही था कि देश को विदेशी हुकूमत से स्वतंत्र कराना। संसाधन संपन्न ब्रिटिश सत्ता से भिड़कर उसे देश छोड़ने के लिए मजबूर कर देने के बदले हमारे वीर सपूतों को बड़ी कुर्बानी देनी पड़ी है। विदेशी सत्ता से सीधे टकराने वाले क्रांतिकारियों ने अपने कार्यों से न केवल सत्ता नशीनो का जीना दुश्वार कर दिया था वरन् आज वह हमारे भीतर एक नई ऊर्जा का संचार कर मातृभूमि की सेवा करने के लिए जोश एवं जज्बा भरते रहते हैं। इन सबके बावजूद उन्होंने जो सपना देखा था उस पर हम क्या खरा उतर रहे हैं यह सोचनीय बिंदु है। और तो और उनको वह सम्मान तक देने में हम कहीं न कहीं पीछे रह जाते हैं जिनके वह हकदार हैं। युवा पीढ़ी के आदर्श सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां जैसे अनेक महान सपूतों के शौर्य एवं योगदान को बताने की आवश्यकता नहीं है और न ही उनका प्रताप इतना ओजहीन था कि उन्हें भूला जा सके।

उन महापुरुषों का त्याग उनकी कुर्बानी, शहादत आज हमारे लिए अमूल्य निधि है जो हम सबको नित उर्जांवित करती रहती है। उन वीरों की यादों को सहेजने के लिए शासन- प्रशासन द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्य किए जाते रहते हैं ताकि आने वाली पीढ़ी उनके त्याग और बलिदान से रूबरू हो सकें एवं यह पता चले कि कैसे आजादी के लिए बहुत बड़ी कुर्बानी देनी पड़ी थी। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले तथा अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले अनेक क्रांतिकारी ऐसे भी हैं जिनके प्रति हम सब यथोचित कृतज्ञता अर्पित करने में भी कोताही करते हैं। कहीं हम उनकी यादों को भूलते तो नहीं जा रहे हैं। अनेक क्रांतिकारियों के तो यह हाल है कि उनकी मूर्तियां, कब्र, मजार आज खड़ी तो कर दी गई हैं लेकिन उनका कोई पुरसाहाल नहीं है, उन्हें कोई पूछने वाला नहीं है। वह जीर्ण-शीर्ण हालात में हैं, ठीक उनके परिजनों का भी यही हाल है।

श्री राम अनुज पांडे जी एवं श्रीमती सावित्री देवी जी की गोद में सात जुलाई वर्ष 1964 को उत्तर प्रदेश के जनपद फैजाबाद के सनेथू ग्राम में जन्मे श्री सूर्यकांत पांडे जी (Surykant Pandey) बचपन से ही क्रांतिकारियों के प्रति असीम अनुराग की भावना से ओतप्रोत रहे हैं। गरीबों, मजलूमों, दीनहीनो के प्रति आपके मन में बचपन से ही असीम स्नेह कूट-कूट कर भरा हुआ था। छात्र जीवन से ही स्वाभिमानी और निडर स्वभाव के होने के कारण आपने हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही होने वाले लोकसभा चुनाव में गांव में गरीबों, पिछड़ों, अशिक्षित लोगों को मतदान में सम्मिलित न होने देने के चलते आंदोलन का बिगुल फूंक दिया। आपके इस हौसले से गरीब, निर्बल, पिछड़े वर्ग के व्यक्तियों में उत्साह आया और सभी ने मतदान में बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया। यहीं से आपके भीतर समाज के लिए कुछ करने की, गरीबों, मजलूमो के प्रति सेवारत होने की प्रबल भावना का बीजारोपण हुआ। इसी के चलते आप आगे की पढ़ाई न कर सके और अपने को पूर्णरूपेण समाज सेवा में समर्पित कर दिए।

फैजाबाद में ही अमर शहीद अशफाक उल्ला खां जी (Mr. Ashfaq Ullah kha) को शहादत मिली थी अतः आपने क्रांतिकारियों की यादों को सहेजने के लिए मन में हिलोरें मार रही भावना को सहेजने का कार्य शुरू किया। अपनी इसी भावना के चलते वर्ष 1989 में आपने फैजाबाद में अशफाक उल्लाह खां मेमोरियल शहीद शोध संस्थान (Ashfaq Ullah kha Memorial Martyr Research Institute) की स्थापना की तथा प्रतिवर्ष आप शहीदों की यादों को सहेजने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम करते रहते हैं। इसके साथ ही आप प्रतिभाओं के उन्नयन हेतु भी अत्यधिक कार्य करते हैं। साहित्यकारों, मनीषियों, चिंतकों, समाजसेवियों के प्रति आपके मन में विशेष अनुराग है इस हेतु भी आप सदैव कार्यरत रहते हैं।

किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वालों की प्रशंसा किए जाने से एक तो उनके मन में संतोष की अनुभूति होती है तो दूसरी तरफ अन्य लोगों के भीतर भी इस तरह के कार्य करने की ललक जगती है। अनेक साहित्यकार, वैज्ञानिक, खिलाड़ी, चिकित्सक, समाजसेवी हैं जो अपने कार्यों से मानवता की, समाज की सेवा में रत हैं भले ही उनके त्याग पर किसी की नजर नहीं जाती है। परम श्रद्धेय श्री सूर्यकांत पांडे जी ने यह फैसला किया कि आप अशफाक उल्लाह खां मेमोरियल शहीद शोध संस्थान के माध्यम से इस तरह की विशिष्ट शख्सियतों को सम्मानित करने का कार्य करेंगे। इसी दिशा में आपने वर्ष 1998 से “माटी रतन ” (Maati Ratan Award) नामक सम्मान प्रदान किए जाने की शुरुआत की। आप द्वारा चलाई गई यह मिसाल आज संपूर्ण देश में आभायमान हो रही है। शहीदों के नाम पर दिया जाने वाला देश का यह इकलौता प्रतिष्ठित सम्मान है। आज माटी रतन सम्मान को पूर्व के नोबेल अवार्ड के रूप में माना जाने लगा है। अनेक विख्यात लोगों को जैसे मशहूर शायर पद्मश्री अनवर जलालपुरी जी, मुनव्वर राना साहब, विश्वविख्यात पर्वतारोही आदरणीया अरुणिमा सिन्हा जी जैसी तमाम ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें इस लब्ध प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा जा चुका है।

आज मात्र फैजाबाद जनपद ही नहीं वरन संपूर्ण प्रदेश में श्री सूर्यकांत पांडे जी को गरीबों, मजलूमो के मसीहा के रूप में देखा जाता है। आपने स्नातक तक की शिक्षा भी नहीं पूर्ण की लेकिन जैसे ही समय मिलता है सदैव अध्ययन में डूबे रहते हैं। आपने अनेक रचनाएं भी की हैं जिसमें प्रमुख हैं घर पर आगाज एवं जज्बात। प्रख्यात साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन जी के मुरीद आप साक्षी नामक पत्रिका (magazine- Shakshi) का भी संपादन करते हैं। इसमें 1857 से लेकर 1957 तक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों (freedom fighters) के जीवन के विविध पहलुओं के बारे में रहता है। शहीदों के नाम पर गरीब, मेधावी बच्चों को आप छात्रवृत्ति भी प्रदान करते हैं। सामाजिक एकता को मजबूत बनाने की दिशा में प्रतिवर्ष अशफाक उल्ला खां के जन्मदिन पर अखिल भारतीय मुशायरा एवं कवि सम्मेलन आयोजित करते हैं। देश में सामाजिक सद्भाव बरकरार रहे इसके लिए आप जनपद से सैकड़ों युवाओं को भर्ती कर उन्हें तैयार करते रहते हैं। जनपद के शायरों-कवियों की रचनाओं का प्रकाशन भी आप कराते हैं। शहीदों के प्रति नूतन पीढ़ी को जागरूक करने के लिए आपने वर्ष 2017 में 2339 किलोमीटर की पदयात्रा थी। अपना संपूर्ण जीवन शहीदों की यादों को सहेजने, संवर्धित करने में समर्पित कर देने वाले परम श्रद्धेय श्री सूर्यकांत पांडे जी, अशफाक उल्ला खां जी के नाम पर एक विशाल संग्रहालय स्थापित हो इसी सपने को पूरा करने के लिए प्रयासरत हैं।