सामान्य वातावरण (Environment) में जैसे ही थोड़ा सा जलवायुगत परिवर्तन (Climatic change) होता है तो हम लोग परेशान हो जाते हैं। तापमान अधिक हो जाए तो भी तथा कम हो जाए तब भी। जाड़े के दिनों में तापमान की गिरावट से सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। अब यदि कई महीनों तक ऐसे ही वातावरण में किसी व्यक्ति को रहना पड़े तो अनुकूलन (Adoptation) करना कितना कठिन होता होगा। लेकिन हमारे बीच ऐसे वैज्ञानिक (Scientist) हैं जो बेहद कठिन हालातों में जाकर शोध करते हैं।
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या (Dr. Ram Manohar Lohia Avadh University, Ayodhya) में पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष (Head of Department of Environmental Science), प्रोफेसर श्री जसवंत सिंह जी (Prof. Jaswant Singh) अंटार्कटिका (Antarctica) पर पहुंचकर वहां कई-कई महीने रहकर शोध (Research) कार्य करते है, हाँ यह अलग बात है कि इसके लिए उन्हें अक्सर अपने प्राणों को भी जोखिम में डालना पड़ता है।
सर्वप्रथम वर्ष 2002 में अंटार्कटिक अभियान पर जाने वाले भारतीय दल में शामिल होने का अवसर आपको मिला। वहाँ पर सूर्य से आने वाली पराबैगनी किरणों (Ultara Violet Rays) का पौधों पर क्या असर पड़ता है इस पर आपको अनुसंधान करना था। आपने वहाँ पहुंचकर अनेक गंभीर तथ्यों पर नूतन जानकारी एकत्रित की, जिसकी वैज्ञानिकों द्वारा आपकी खूब सराहना की गई। आपकी असाधारण वैज्ञानिक दृष्टि को देखते हुए वर्ष 2004 में पुनः अंटार्कटिका अभियान पर जाने वाले भारतीय दल में शामिल होने का अवसर भारत सरकार द्वारा आपको प्रदान किया गया। आपको अंटार्कटिका के दोनों बार के अभियान के दौरान यद्यपि कई बार जानलेवा समस्याओं से जूझना पड़ा लेकिन न तो इससे आपके शोध कार्य पर कोई असर पड़ा और न आप निराश हुए। आपने दोनों बार जाकर पर्यावरण के अनेक गूढ़तम रहस्यों से पर्दा उठाने का प्रयास किया। काफी अंतराल व्यतीत हो जाने के उपरांत वर्ष 2018 में आप पुनः अपनी कार्य योजना का खाका तैयार करते हुए अगली साल यानी 2019 में एक बार फिर ध्रुवों ( poles) पर जाकर अपनी शोध को आगे बढ़ाना है। आपकी अभी परिकल्पना चल ही रही थी कि अचानक सूचित किया गया कि भारत सरकार का ध्रुवों पर अभियान वर्ष 2018 में ही जा रहा है, जिसमें महीनों नहीं मात्र कुछ दिन ही शेष रह गए हैं। अब आपके सामने दो तरफा असमंजस की स्थिति थी। एक तो इतने कम दिन में समस्त कागजी औपचारिकताएं ही पूर्ण कराना मुश्किल तो दूसरी तरफ पुत्री का विवाह तय हो चुका था उसमें भी कुछ ही दिन रह गए थे। आखिरकार एक पिता के लिए अपनी लाडली को डोली में विदा करने का सपना किसी अंटार्कटिका अभियान से इक्कीस ही होता है। विचारों के धनी एवं शोध को अपने जीवन में पूजा मानने वाले प्रोफेसर जसवंत सिंह जी ने अभियान पर एक बार फिर जाने का निर्णय लिया और आनन-फानन में पुत्री का विवाह कर शीघ्रता से समस्त औपचारिकताएं पूर्ण कराकर अभियान पर चल दिए।
अंटार्कटिक पहुंचकर विविध अनसुलझे रहस्यों से पर्दा उठाने की आपके द्वारा सफल कोशिश की गई। अभियान से वापस आने पर आपके लिए नई दिल्ली में तथा विश्वविद्यालय में सम्मान समारोह आयोजित किया गया एवं आपकी कर्मठता को देखते हुए डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में एडवांस अंटार्कटिक एनवायरमेंटल रिसर्च सेंटर (Advanced Antarctic Environmental Research Center) की स्थापना की गई। विज्ञान, पर्यावरण एवं शोध को समर्पित यह वैज्ञानिक महात्मा अभी भी पूरी शिद्दत के साथ अपनी तपस्या में जुटे रहते हैं।