उत्तराखंड की वादियों को तो प्रकृति ने अपने प्राकृतिक स्वरूप में काफी समृद्ध बनाया है लेकिन उसी प्राकृतिक छटावों के बीच गरीबी से अभिशप्त दर दर की ठोकर खाते भीख मांगते बच्चों को जब एक युवती देखती हैं तो उन्हें अपने बचपन के संघर्ष में दिन याद आ जाते हैं और वह भावुक हो उसी समय तय करती हैं अब वह भीख मांग रहे बच्चों के लिए कुछ करेंगी तथा इन्हें इस अभिशाप से मुक्त करा कर रहेंगी। उस देवी की देखरेख में आज वह सैकड़ों बच्चे पढ़ रहे हैं, बेहतरीन जीवन जी रहे हैं जो कभी भीख मांग कर जीवन यापन करते थे । थ ममतामई मां एक देवी की तरह हजारों हजार इंसानों के जीवन में एक कतरा रोशनी बांट रही है।यह देवी आज संपूर्ण उत्तराखंड की शान बन गई है तथा लोग उन्हें बड़े आदर से गुंजन बिष्ट अरोड़ा (Gunjan Bisht Arora) के नाम से जानते हैं। आदरणीय गुंजन अरोड़ा जी के पिता श्री हीरा सिंह बिष्ट जी का देहावसान ढाई वर्ष की उम्र में हो गया, मां ने बेटी को अकेले पाला पोसा तथा उच्च शिक्षा की पढ़ाई कराई । श्री संदीप अरोरा नामक एक बेहतरीन एवं आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति से आपका विवाह हुआ और आप सुखमय जीवन जीने लगी। कुछ ही समय बाद जब आप गरीबों को देखती तो अपना सुख व्यर्थ लगने लगता अब इस अंतर की आवाज को आप बहुत दिन तक नहीं दबा पा रही थी ।अब आप गरीब भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाने लगी ,समय निकालकर एवं कुछ समय उपरांत वीरांगना नामक एक संस्था की स्थापना कर जुट गई तपस्या में ।कभी किसी से आर्थिक मदद नहीं लेती,हां बहुतेरे लोग आते हैं सामान लाकर आपके बच्चों को दे देते हैं। धीरे-धीरे आपकी मदद हेतु लोग आने लगे ।आपके मन में यह ख्याल रहता है यदि इस तरह के लोगों को शिक्षित का स्वालंबी जाए तो इनकी मदद की जा सकती हैं। शुरुआत में लोग आपको पागल ,सनकी कहते , लेकिन आप पर किसी की बातों का कोई असर नहीं पड़ता और लगी रहती है अपने कार्य में। आपने गरीब, भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाना प्रारंभ कर दिया और यह कारवां बढ़ता ही जा रहा है। जिन बच्चों एवं उनके माता-पिता को शिक्षा शब्द का अर्थ तक नहीं पता होता वह क्या जाने स्कूल पढ़ाई ,उसके हानि लाभ ।आपको ऐसे माता-पिता को समझाना पड़ा,जो काम बहुत कठिन था। लोगों से आप बस इतना ही कहती हैं संभव हो तो अपने सामान हमारे बच्चों को दे दीजिए। आज बहुत लोग आते रहते हैं और आपके कार्यों के समक्ष नतमस्तक हो अभिभूत होते रहते है। आप गरीब बच्चों को , गरीब मजलूम की हर तरह से मदद करने का प्रयास करती हैं ।आपकी साधना को चहुं ओर अब सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है ।विभिन्न प्रकार के सम्मान से आपको नवाजा जाता रहता है ।पर करुणा के सागर को अपने में समेटे इस देवी के लिए तो असली सम्मान यह है कि जब कोई बच्चा भिछा के थैली को त्याग कर मुस्कुराते हुए शिक्षार्थ थैले को कंधे पर रख चल पड़ता है विद्यालय रूपी मंदिर में।