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जब तक आप सामने वाले के मन की करते है, तो अच्छे है। अगर, एक बार अपने मन की कर ली तो, सभी अच्छाइयां बुराई में तब्दील हो जाती है।
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आप अकेले बोल तो सकते है परन्तु बातचीत नहीं कर सकते। आप अकेले आनन्दित हो सकते है परन्तु उत्सव नहीं मना सकते। अकेले आप मुस्करा तो सकते है परन्तु हर्षोल्लास नहीं मना सकते हम सब एक दूसरे के बिना कुछ नहीं हैं यही रिश्तों की खूबसूरती है।
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"बहस" और "बातचीत" में एक बड़ा फर्क है "बहस" सिर्फ़ यह सिद्ध करती है, *कि "कौन सही है" । जबकि "बातचीत" यह तय करती है,कि "क्या सही है"।
बात इतनी मीठी रखो की कभी वापिस लेनी पड़ जाए तो ख़ुद को कड़वी ना लगे।