पीढ़ी दर पीढ़ी मानव सभ्यता का चलते जाना, मनुष्य की सृजनशीलता के कारण ही होता है। इस सृजनहार शक्ति का आधार बिंदु एक स्त्री होती है। इसी प्रकार संपूर्ण प्रकृति की शक्ति का आधार नारी को माना जाना कतई अनुपयुक्त नहीं होगा। संतान को अपने पेट में पालने से लेकर उत्पत्ति तक की सामर्थ्य ईश्वर ने नारी को ही दी है। उसी कड़ी में एक अति महत्वपूर्ण जैविक क्रिया (Biological action) है, माहवारी (menstrual cycle)। माहवारी एक ऐसा शब्द है जिसे सार्वजनिक तौर पर सुनने में, बोलने में असहजता महसूस होती है, विशेषकर ग्रामीण परिवेश की अशिक्षित, निर्धन महिलाओं एवं लड़कियों को, जबकि यह प्रकृति द्वारा दिया गया अनमोल उपहार है। मात्र महिलाओं के लिए ही नहीं अपितु संपूर्ण सृष्टि के लिए, सृष्टि के निर्माण एवं उन्नयन में इस शारीरिक क्रिया का योगदान अनमोल होता है, लेकिन इसके प्रति अज्ञानता, संकोच एवं रूढ़िवादिता महिलाओं के लिए खतरनाक हो जाती है। यह अत्यंत ही दुर्भाग्य का विषय है कि गरीब और अशिक्षित महिलाओं का बहुत बड़ा हिस्सा अभी भी इसके प्रति अज्ञानता तथा तद्जनित विकारों से ग्रसित हो अभिशप्त जीवन जीने को विवश है।

लखनऊ की रहने वाली कंप्यूटर साइंस (Computer science) से ग्रेजुएट तथा लखनऊ विश्वविद्यालय (University of Lucknow) से सामाजिक कार्य में मास्टर डिग्री एम एस डब्लू (MSW) की शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत एक 25 वर्षीय युवती ने अपने अन्य साथियों की तरह नौकरी करने के बजाय ग्रामीण इलाकों में घूम-घूम कर गरीब महिलाओं को माहवारी के दौरान स्वच्छता सावधानी बरतने (menstrual hygiene) के प्रति जागरूक करना प्रारंभ किया। सुश्री शैलजा चौधरी (Shailja Choudhery) नामक इन होनहार युवती ने अपने साथ कुछ दोस्तों को जोड़ा तथा सभी को लेकर एक छोटी सी संस्था अक्षय फाउंडेशन (Akshay Foundation) बनाकर इस कार्य में जी जान से जुट गई। शुरुआत में लखनऊ के कुछ गाँव को ही चुना बाद में दूरदराज के गाँव में भी जाने लगी और न केवल महिलाओं को अपितु बच्चों, बच्चियों को स्वास्थ्य के साथ-साथ अशिक्षा, गंदगी के कुप्रभाव के प्रति सचेत करने लगी। आप गाँव के अतिरिक्त स्कूलों में भी जाती हैं, वहां छात्रों को जागरूक करती हैं। आपने गाँव में प्रायः यह पाया कि भयंकर गरीबी के कारण लड़कियों तथा महिलाओं की एक बड़ी संख्या चाहकर भी माहवारी के दिनों में सैनिटरी पैड (Sanitary Pads) खरीद कर प्रयोग नहीं कर पाती। इस समस्या को दृष्टिगत रखते हुए आप अपनी संस्था के माध्यम से लोगों के सहयोग से धनराशि एकत्रित कर तथा यथा संभव पैड खरीदकर ग्रामीण इलाकों में घूम-घूम कर निःशुल्क वितरित करती हैं। शुरुआती दौर में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था, लोगों को समझाना काफी कठिन कार्य था, लेकिन आप जुझारू सेनापति की तरह डटी रही और धीरे-धीरे सफलता की ओर अग्रसर हुई।

आज पैडगर्ल (Pad Girl) की कोशिशों के चलते न केवल लखनऊ के ग्रामीण क्षेत्रों में अपित दूर-दूर के ढेर सारे जनपदों जैसे बाराबंकी, रायबरेली, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, अयोध्या, सुल्तानपुर, जौनपुर, प्रतापगढ़, प्रयागराज, कानपुर, उन्नाव , हरदोई आदि जिलों में ग्रामीण महिलाओं में माहवारी के दौरान असावधानी से होने वाली बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ी है एवम् तद्जनित स्वास्थ्य में सुधार आया है। आपके कार्यों को खूब प्रसिद्धि भी अब मिलने लगी है। समाचार पत्रों ने आपको पैडगर्ल के रूप में प्रकाशित करना शुरू कर दिया है तथा टेलीविजन चैनलों ने भी आपके कार्यों को प्रसारित किया है और आज देखते-देखते लखनऊ की इस पैड गर्ल की ख्याति दूर-दूर तक पहुंचने लगी है। अब तो आपको नाना प्रकार के पुरस्कारों से भी पुरस्कृत किया जाने लगा है और आज आप लखनऊ की ही नहीं अपितु संपूर्ण उत्तर प्रदेश की शान बन चुकी हैं।