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चलते रहे कदम तो। किनारा जरुर मिलेगा।। अन्धकार से लड़ते रहे। सवेरा जरुर खिलेगा। जब ठान लिया मंजिल पर जाना। तो रास्ता जरुर मिलेगा। ऐ राही ना थक, चलता चल। एक दिन समय जरुर फिरेगा।
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क्रोध हमारा एक ऐसा हुनर है, जिसमें फंसते भी हम हैं, उलझते भी हम हैं, पछताते भी हम हैं, और पिछड़ते भी हम ही हैं।
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समस्याओं का अपना कोई साईज नही होता। वो तो सिर्फ हमारी हल करने की क्षमता के आधार पर छोटी और बडी़ होती है।
जो चाहा वह मिल जाना सफलता है। जो मिला है उसको चाहना प्रसन्नता है।