भारतीय समाज में किन्नरों (transgender) की उपस्थिती प्राचीनकाल से ही रही है। विविध पौराणिक ग्रंथों में इनका उल्लेख मिलता है। रामायण काल और महाभारत काल में तो इनका प्रमुखता से वर्णन है। हर वर्ग द्वारा दुर्भाग्य से समाज के एक घटक के रूप में इनको प्रायः नजर अंदाज किया जाता रहा है। साहित्य साधकों द्वारा भी इन पर अपेक्षित कलम नहीं चलाई गई। सामान्यतः अन्य लोगों की अपेक्षा कलमकार तो समाज के हर कोने से बेहतर परिचित होते है, नजर रखते है, इन सब के बावजूद कुछ ऐसे भी कोण हैं जो सामाजिक प्रकाश की किरणों से मरहूम रह जाते हैं। कुछ ऐसी ही हालत समाज के प्रमुख एवं जीवंत घटक किन्नर की है, जिन पर साहित्यिक समर्थवानों की नज़र भी कम ही पड़ी है।
लखनऊ उच्च न्यायालय में न्यायिक सेवा में वरिष्ठ अधिकारी डॉ महेंद्र भीष्म जी (Dr. Mahendra Bhism), किन्नर समुदाय की जीवन कहानी जानने पर भाव विह्वल हो उठे। क्योकि किन्नरों पर कहीं न कोई पुस्तक, न कोई शोधार्थी, न कोई विशेष साहित्य, न नाटक, न फिल्म यानी किन्नर मानव न होकर वास्तव में तीसरी दुनिया का सदस्य (third gender) बना दिए गए। अंततः डॉ महेंद्र भीष्म जी ने इस दिशा में कार्य करने को मन ही मन ठान लिया। किन्नर समाज पर शोध करना, उन पर उपन्यास लिखना, नाटक लिखना और अंततोगत्वा अपनी लेखनी के माध्यम से उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने का, उनको वास्तविक हक दिलाने का, उन्हें सम्मानजनक स्थिति में लाने का फैसला आपने किया।
यह कार्य सरल नहीं था सब से मिलना, सामाजिक व्यवधान, संसाधन की समस्या आदि। लेकिन कहते हैं कि “लीक छोड़ तीन हीं चले शायर, सिंह, सपूत”। आप तो तीनों ठहरे शायर भी, कठिनतम इरादों को पाने की इच्छा शक्ति के धनी वैचारिक सिंह एवं भारत माता के अनमोल सपूत भी। फिर क्या था, चल पड़े अपनी पथरीली, कंटक युक्त डगर पर बिना अधिक कुछ सोचे विचारे। आपकी लेखनी से निकले शब्द जब पुस्तक के रूप में समाज के समक्ष आए तो लोग स्तब्ध रह गए। इतनी पैनी दृष्टि से और अत्यंत बारीकी से, सहजता के साथ, किन्नरों की हकीकत को आपने पाठकों के सामने रखा तो उसे पढ़कर पाठकगण न केवल आह्लादित होने लगे वरन धीरे-धीरे लोगों की सोच में बदलाव की बयार बहना प्रारंभ हुई। यह थी आपकी लेखनी की सबसे बड़ी कमाई, सबसे बड़ी जीत।
किन्नर पर आधारित आपकी मानक रचना “मैं पायल हूं” का विमोचन हो रहा था तो लब्ध प्रतिष्ठित शख्सियत एवं किन्नर गुरु के भाव मंच पर आपकी लेखनी को सलाम कर रहे थे और नतमस्तक हो सभी यह सोचने पर विवश थे कि क्या किन्नर समुदाय के प्रति हम और हमारा व्यवहार सही हैं ? आप एक से बढ़कर एक मसलन मैं पायल हूं, जय हिंद की सेना, तीसरा कंबल, नर कथा जैसी अनेक कालजई रचनाएं रचते गए और “महेंद्र भीष्म” के नाम से समाज के मजबूत प्रहरी बनकर उभरे। आपने इस दिशा में कहानियां, नाटक आदि का भी खूब लेखन किया जिनमें से अनेकों का उच्च स्तरीय मंचन भी हुआ। आपकी लेखनी के ही चलते किन्नर वर्ग के प्रति शासन सत्ता की सोच में व्यापक परिवर्तन आया एवं उनके हितार्थ सोचा एवं किया जाने लगा। आपकी किन्नर समाज से जुड़ी अनेक रचनाओं पर लघु फिल्म बनना प्रारंभ हो चुकी हैं एवं फिल्में बनने की कार्य योजना भी चल रही है। आपने लेखन के द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि हम लोग किन्नर समाज के प्रति जैसा असयंत, अमर्यादित व्यवहार का परिचय देते रहते हैं, यह हमारी अत्यंत ही छोटी सोच और अविकसित संस्कार है तथा हमारे नकली विकासात्मक स्वरूप का प्रमाण हैं अन्यथा यह तो हम सभी जानते है कि किन्नर भी उसी कोख से जन्मते हैं जिससे हम सभी का जन्म हुआ है, वह भी उसी स्तन का पान करते हैं, जिसके सहारे हमारा बचपना बीता है और हमें पाल-पोस कर आज विराट व्यक्तित्व का स्वामी बनाया है। आज डॉक्टर महेंद्र भीष्म जी ने अपनी लेखनी की जादुई ताकत से सामाजिक परिवर्तन की जो अलख जगाई है, किन्नर समाज के इतिहास में सदैव- सदैव के लिए आपका नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा।