कला जगत में हिंदुस्तान के लिए वैश्विक पटल पर महिलाओं की सफलता का इससे बेहतरीन उदाहरण भला और क्या हो सकता है ,कि डॉक्टर चित्रलेखा सिंह (Dr. Chitralekha Singh) विश्व की वह प्रथम महिला हैं जिन्होंने चित्रकला विषय में डिलीट की उपाधि प्राप्त की है। डॉ चित्रलेखा सिंह जी ने कला के क्षेत्र में एक से बढ़कर एक नूतन आयाम स्थापित किए हैं। आपने आगरा विश्वविद्यालय में चित्रकला की प्रवक्ता के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की फिर प्रोफेसर व विभागाध्यक्ष हुई ।आगे चलकर आपने अनेक संस्थाओं की नींव रखी एवं उनकी स्थापना से लेकर उन्नयन तक जुड़ी रही। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की आप रिसर्च एसोसिएट रही, ललित कला संस्थान कि आप संस्थापक निदेशक रही हैं ।मंगलायन विश्वविद्यालय में कला संकाय के संस्थापक दीन के पद को भी आपने सुशोभित किया है तथा अभी भी चित्तौड़गढ़ विश्वविद्यालय आपकी गुरुतर छांव से अभिजीत है ।आपके योग्य निर्देशन में 5 दर्जन से अधिक छात्रों ने पीएचडी तथा लगभग 200 छात्रों ने एमफिल की उपाधि प्राप्त की है । 3 दर्जन से भी अधिक पुस्तकों का लेखन भी आपने किया है। आप के चित्रों की प्रदर्शनी विश्व के अधिकांश देशों में लगती रहती है। चित्रलेखा द विलेज ऑफ आर्ट एट आगरा के द्वारा आज भी पूरे जोश खरोश के साथ अपने तपस्या में सन्नध हैं ।वर्ष 1945 के माह जून की 20 तारीख को जन्मी चित्रलेखा सिंह जी की पांचवी तक की पढ़ाई भटिंडा में और आगे चलकर छह तथा सात कि मिशन स्कूल से ।हाई स्कूल से इंटर तक की शिक्षा पीजी गर्ल्स कॉलेज आगरा में हुई , यह वहीं कालेज था जहां चित्रलेखा जी के चित्रों को पंख लगने शुरु होने लगे थे ।यूं तो बचपन से ही चित्रों को बनाने में आप अपनी छाप छोड़ने लगी थी लेकिन पीजी जैन गर्ल्स कालेज में पहुंचने पर आपके गुणों की खुशबू में तेजी से इजाफा होने लगा था ।बचपन में आपकी नाजुक उंगलियों से बने चित्रों को जो भी देखता मंत्रमुग्ध हो निहारता ही रह जाता था ।जब जलती हुई एक चिता का चित्र आपके द्वारा बनाया गया तो उसे देखकर अनेक कला विदों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की ।आपने चित्रकला विषय के साथ स्नातक और स्नातकोत्तर किया ।आपके जीवन में रामेश्वर प्रसाद शुक्ल जी नामक एक ऐसे करिश्माई व्यक्तित्व का प्रवेश होता है जिन्होंने आपके माता-पिता से कहा इस बेटी को आप मुझे दे दीजिए मैं इस बेटी को कला के क्षेत्र में ले जाना चाहता हूं ।क्योंकि माता-पिता प्रारंभ से ही अपनी बेटी को खूब प्रोत्साहन देते थे एवं पुत्र तथा पुत्री में तनिक भी भेद नहीं रखते थे इसलिए वह गुरुदेव रामेश्वर प्रसाद शुक्ल जी की बात सुन सहर्ष तैयार हो गए। आगे चलकर आपने अपने गुरु के चयन को सौ फ़ीसदी सही साबित कर दिखाया।